हाल में मध्य प्रदेश के हाई कोर्ट ने Enemy Act के अंतरगत फैसला सुनाते हुए सैफ अली खान की भोपाल एवम भोपाल के आसपास के स्थानों की लगभग 15000 करोड़ की संपत्ति को Enemy Property घोषित कर दिया है।
अब ये प्रॉपर्टी निजी रूप से न सैफ अली खान की है, न किसी और की। यह सरकारी संपत्ति के अंतरगत आ जायेगी। अब सैफ अली खान या उनके परिवार का कोई भी सदस्य इस प्रॉपर्टी पर दावा नहीं कर सकता।
आखिर क्या है ये Enemy Property Act और कैसे सैफ अली खान के औरंगजेब कनेक्शन से वह इतनी अपार संपत्ति के मालिक बन गए?
इसे समझने के लिए हमें इतिहास में थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा।
अठारवीं सदी के करीब औरंगजेब की सेना में एक अफगानी शख्स था जिसका नाम था दोस्त मोहम्मद खान।
जब मराठा और ब्रिटिश राज के कारण मुगल साम्राज्य का अंत होना शुरू हुआ तो इसका फायदा दोस्त मोहम्मद खान ने लेते हुए भोपाल क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया और इसे अपनी रियासत बना लिया। जहां ग्यारहवीं सदी में पहले हिंदू राजा भोज राज किया करते थे।
इसके साथ शुरुआत हुई भोपाल को एक मुस्लिम क्षेत्र के रूप में बदलने की। हालांकि भोपाल इस्लामी राज के अंदर था मगर वहां की ज्यादातर जनसंख्या हिंदुओं की थी और हिंदुओं के ऊपर एक इस्लामिक राज्य स्थापित किया जा रहा था।
इसके बाद 1926 में सुल्तान जहां बेगम भोपाल की नवाबी बेगम बन जाती है। मगर इन्होंने 1926 में ही अपनी गद्दी छोड़, अपने बेटे हमीदुल्लाह खान को भोपाल का नवाब बना दिया।
हमीदुल्लाह खान अंग्रेजी शिक्षा से शिक्षित थे। उनकी जीवनशैली अंग्रेजो से मिलली-जुलती थी। मगर राजनीतिक रूप से उनकी विचारधारा पूरी तरीके से इस्लामिक थी। ब्रिटिश शासन के दौरान उन्होंने अंग्रेजों के साथ ईमानदारी दिखाते हुए उनके साथ काम किया था। वह अंग्रेजी हुकूमत का समर्थन करते थे इसी कारण से अंग्रेजों ने उन्हें ‘चांसलर ऑफ द चैंबर ऑफ प्रिंसेस’ बनाया था।
हमीदुल्लाह खान चाहते थे कि उनका शाही प्रभाव हमेशा बना रहा है। भले ही भारत को आजादी न मिले।
इसलिए वह 1947 की आजादी का भी विरोध करते नजर आए थे क्योंकि उन्हें डर था कि अगर भारत आजाद हो गया तो एक हिंदू बहुल इलाके में उनका साम्राज्य नहीं चल पाएगा।
जब मोहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की बात करना शुरू किया तो हमीदुल्लाह खान उनका समर्थन कर रहे थे। हमीदुल्लाह खान ने मोहम्मद अली जिन्ना को पत्र भी लिखा था जिस पर उन्होंने बताया था कि ‘मैं हमेशा से पाकिस्तान का समर्थन करता आया हूं और मुस्लिम लीग यह बात जानती है। मगर भोपाल में हिंदू बहुसंख्यक है जिस वजह से मैं मजबूर हूं।’
उन्होंने आगे लिखा कि ‘चाहे कुछ हो जाए मैं भारत के समर्थन में नहीं आऊंगा ना भारत के साथ रहूंगा। मगर मैं हमेशा इस्लाम और पाकिस्तान का समर्थक रहूंगा और जो हो सके वह मदद पाकिस्तान को करूंगा’
आजादी के समय अंग्रेजों ने रियासतों को तीन विकल्प दिए थे।
पहला, वह भारत के साथ मिल जाए।
दूसरा, पाकिस्तान के साथ मिल जाए
या फिर एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित हो।
ज़्यादातर राज्य भारत के समर्थन में आए। पर हैदराबाद जैसी रियासतें जो पाकिस्तान दिल रखती थी, उन्हें सरदार पटेल ने अपने तरीके से समझाकर भारत मे शामिल किया।
हमीदुल्लाह खान भी भोपाल को एक स्वतंत्र इस्लामीक रियासत बनाना चाहते थे। जहां वह सुप्रीम लीडर बनकर एक इस्लामिक शासन बना सके। मगर उनके सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि भोपाल पाकिस्तान से भौगोलिक रूप में बहुत दूर था तो पाकिस्तान किसी भी तरीके से उनकी मदद नही कर सकता था और भोपाल की एक बड़ी जनसंख्या हिंदू थी।
इस बात में कोई शक नहीं है कि अगर उन्हें भौगोलिक और राजनीतिक रूप से अवसर मिलता तो वो पाकिस्तान के समर्थन में ही उतरकर खुद को पाकिस्तान में शामिल करते।
इसी के साथ लोकल हिंदू लोगो ने भी नवाब के रवैया को देख उनका विरोध करना शुरू कर दिया। प्रजामंडल नाम का एक गुप्त सिविल मूवमेंट शुरू हुआ जिसमें भारी संख्या में छात्रों, नेताओं और हिंदू लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
सरदार वल्लभभाई पटेल लगातार रियासतों को भारत में मिलाकर, भारत को एक कर रहे थे। सरदार पटेल ने हमीदुल्लाह खान को कई बार चेतावनी दी कि वह हिंदुओं के ऊपर अत्याचार ना करें। पर नवाब सुनने को तैयार नहीं थे। इसके बाद भारत सरकार ने आर्थिक एवं अन्य तरीको से भोपाल पर दवाब डालना शुरू किया। भोपाल की आबादी पूरी तरीके से नवाब के खिलाफ हो चुकी थी। तब जाकर 30 अप्रैल 1949 को नवाब हमीदुल्ला खान ने एग्रीमेंट में हस्ताक्षर करते हुए खुद को भारत से जोड़ा। मगर इसके बाद भी उन्होंने भारत से गद्दारी की माफी कभी नहीं मांगी।
उल्टा भारत सरकार उसे लगातार पेंशन देती रही जिसके सहारे वह एक अच्छी जिंदगी यहां जीता रहा पर इसके बाद भी उसके पाकिस्तान संपर्क कभी खत्म नहीं हुए।
इसके बाद यह जानना भी जरूरी है कि भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान की तीन बेटियां थी। अविदा सुल्तान, साजिदा सुल्तान और राबिया सुल्तान।
दूसरी बेटी साजिदा सुल्तान की शादी इफ्तार अली खान पटौदी से हुई थी। वह पटौदी के नवाब थे जो बाद में भारत और इंग्लैंड की क्रिकेट टीम से खेले थे।
उनके बेटे मंसूर अली खान पटौदी सैफ अली खान के पिता थे। हालांकि पटौदी खानदान का इतिहास भी भारत के विरुद्ध गतिविधियों से भरा हुआ है। जब अंग्रेज मराठा साम्राज्य के खिलाफ दूसरा ऐंग्लो-मराठा युद्ध लड़ रहे थे, तो मराठी सेना में एक अफगान कमांडर था फैस तालाब खान। यह आदमी अफगानिस्तान के वरेज काबिले से था। फैस तालाब खान ने मराठाओं को धोखा देते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी को मराठा सेना की गुप्त जानकारी दे दी थी। उसी का फायदा उठाते हुए अंग्रेजों ने मराठाओं को आसानी से हरा दिया और बदले में अंग्रेजों ने इस आदमी को ‘नवाब आफ पाटौदी’ घोषित कर दिया।
समय बीता, 1960 में भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान की मौत हो गई। इसके बाद सवाल उठने लगे की नवाब हमीदुल्लाह खान की 15000 करोड़ की संपत्ति का वारिस कौन होगा।
हमीदुल्लाह खान चाहते थे कि उनकी बड़ी बेटी आबिदा खान इस पूरी संपत्ति की वारिस बने। हालांकि आबिदा खान को यह लगा कि उसके पिता उसे फंसा रहे हैं, इसलिए उसने जिन्ना के साथ बातचीत की और भारत से काफी पैसा लेकर वह पाकिस्तान चली गई और वहाँ की नागरिकता ले ली थी।
वहाँ अविदा ने अपनी पूरी जिंदगी बड़े अच्छे से आराम के साथ बिताई। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड और पाकिस्तान विदेश मंत्री रहे शहरयार खान आबिदा खान का ही बेटा था।
अविदा खान के पाकिस्तान भाग जाने के बाद जो भारत में संपत्ति छुटी थी वह एक लावारिस संपत्ति की तरह हो गई। जिसे उसकी छोटी बहन साजिदा खान ने दावा करते हुए अपने कब्जे में ले लिया।
यह अकेला ऐसा मामला नहीं था। ऐसे कई सारे लोग थे जो विभाजन के बाद अपनी मर्जी से पाकिस्तान चले गए थे। उनकी संपत्ति यही थी, भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ अच्छे रिश्ते रखने के नाते ऐसी संपत्तियों को ‘कस्टोडियन केयर’ में रखा था, इसका मतलब था कि जब तक वह लोग वापस लौट के नहीं आते तब तक इन संपत्तियों का सरकार ध्यान रखेगी और जब वह लौटेंगे तो वापस उन संपत्तियों पर अपना दावा पेश कर सकेंगे।
मगर इसके बाद ही पाकिस्तान और चीन भारत को अपना असली रंग दिखाते हुए युद्ध छेड़ देते हैं और भारत को समझ आता है कि पाकिस्तान के साथ अच्छे रिश्ते नहीं रखे जा सकते। इसके बाद भारत सरकार की आंखे खुलती है और सरकार को समझ आता है कि वो लोग जो ऐसी संपत्ति के मालिक है अगर वापस भारत लौट कर इन प्रॉपर्टी पर दावा कर इसपर कब्जा करते है तो यह भारत की रक्षा नजरिए से बहुत नुकसानदायक होगा।
इसलिए भारत सरकार इन संपत्तियों को एक खतरा घोषित कर देती है। 10 सितंबर 1965 को भारत सरकार ने पाकिस्तान गए सभी लोगों की संपत्ति को ‘Enemy Property’ घोषित कर दिया। इन प्रॉपर्टी में शामिल था जमीन, हवेली, घर, बैंक बैलेंस और कंपनियां।
इसमें परवेज़ मुशर्रफ की भी सारी संपत्ति को जब्त कर लिया गया था।
मगर इस कानून के अंदर एक बहुत बड़ी खामी थी। इसमें कुछ बातें अच्छे से नहीं समझाई गई थी कि जैसे जो व्यक्ति पाकिस्तान चला गया है मगर उसके वंशज अगर यही रुक गए तो क्या वह इस प्रॉपर्टी पर अपना दावा ठोक सकते हैं। क्योंकि ऐसे लोगों का कहना था कि जिन्हें पाकिस्तान जाना था वह चले गए मगर हम यहीं रुके हैं तो यह संपत्ति के असली मालिक हमें बना दिया जाना चाहिए।
इस खामी का कई लोगों ने गलत फायदा उठाया और सरकार भी इससे बड़ी परेशान हुई। खामी का फायदा उठाते हुए संपत्ति जो सरकार के कब्जे में आ गई थी वह वापस जा रही थी और यह सुरक्षा नजरिए से राष्ट्रीय स्तर का बहुत बड़ा खतरा था।
ऐसा एक मामला था मेहमुदाबाद के नवाब का जिसने 1957 में आजादी के 10 साल बाद भारत छोड़ पाकिस्तान जाकर वहां की नागरिकता ले लिए था और अपनी सारी संपत्ति पाकिस्तान को दान में दे दिया था।
भारत सरकार उसकी सारी संपत्ति को Enemy Property घोषित कर दिया था मगर बाद में नवाब का बेटा लखनऊ कोर्ट में यह केस लगा देता है। 2001 में वो केस जीत गया और हजारों करोड़ की संपत्ति को उसने वापस ले लिया।
सैफ अली खान का परिवार भी इसी तरीके से पूरी संपत्ति का मालिक बन गया था। जिसमें शामिल थी भोपाल और आसपास के क्षेत्र के हजारों करोड़ों की जमीन, फ्लैग स्टाफ हाउस, नूर-उस-सबा पैलेस, होटल दर-उस-सलाम, हबीबी बंगला और अहमदाबाद पैलेस जिसकी कीमत 15000 करोड़ रुपए की है।
2014 में नई सरकार बनने के बाद 2015 में एक समिति बनाई गई जिसने पटौदी परिवार की संपत्ति की जांच शुरू कर दी। समिति का यह कहना था कि इन संपत्तियों को भी Enemy Property के अंदर आना चाहिए मगर पटौदी परिवार के राजनीतिक संबंध राजनीतिक पार्टियों से अच्छे थे इसलिए कभी भी इन संपत्तियो को Enemy Property के अंदर नहीं लिया गया।
2017 में भारत सरकार ने इस कानून में थोड़े बदलाव करते हुए सारी खामियों को खत्म किया। इसके बाद यह साफ हो गया कि मौजूदा समय और भूतकाल में यह सभी जगह लागू होगा। जिसका मतलब था कि कोई भी ऐसी संपत्ति जिसका असली मालिक अगर पाकिस्तान चला गया है तो वह Enemy Property ही होगी जिसपर ट्रांसफर, इन्हेरिटेंस और बेचने पर पूरी तरीके से रोक लगी रहेगी।
इसके बाद कई सालों तक मामला कोर्ट में चला और हाल में कोर्ट का फैसला आ गया।
सैफ अली खान के पास सब ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं। उनके पास अब कुछ तरीके हैं जो वह निश्चित ही अपनाने का प्रयास करेंगे।
- Enemy Property Tribunal में अपील करना।
- सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटिशन दायर करना। वह वहां जाकर दलील दे सकते हैं कि यह संपत्ति वर्षों से भारत में और इसका उपयोग भारतीय नागरिकों द्वारा हो रहा है तो इसलिए इन्हें Enemy Property के दायरे से बाहर रखना चाहिए।
- समझौता या मुआवजा की सरकार से अपील कर सकते हैं और यह भी कोशिश कर सकते हैं कि सरकार ट्रस्ट बनाकर इन संपत्तियों को चलाएं और उन ट्रस्ट में सैफ अली खान के परिवार को रख ले।
मगर इनमें से सारे तरीकों में संभावनाएं कम नजर आती हैं क्योंकि एक्ट के अंदर महत्वपूर्ण बदलाव हो चुका है और अगर वह अभी भी अविदा सुल्तान के वारिस कहलाते हैं तो एक तरीके से वह भी Enemy मतलब शत्रु कहलाएंगे।
यह तो समय बताएगा कि सैफ अली खान कोर्ट का सहारा लेकर सरकारी नियमों के साथ खेल जाते है जैसा अक्सर लोग, मुज़रिम किया करते है या फिर यह सारी संपत्ति भारत सरकार की हो जाती है।