उधार एक ऐसा शब्द है जिसे सुनकर कई लोगों को अपना पुराना बुरा अनुभव याद आ जाता है। कुछ लोग सचेत हो जाते हैं। तो कुछ लोगों के लिए यह एक आशा की किरण होती है।
हालांकि उधार के उच्चारण में ही हार छुपी होती है। इसमे देने वाला मूल्य से हारता है और लेने वाला अपनी छवि हारता है।
यही कारण है कि आपने भी कई दुकानों में लिखा देखा होगा कि ‘उधारी बंद है।’
क्योंकि उधारी की इस सुविधा को व्यापारियों को छोड़, बाकि लोग सही तरीके से उपयोग नही करते। मगर उधार भारत में एक नकारात्मक शब्द है जबकी देखा है तो उधार एक सुविधाजनक चीज़ है जिससे मुसीबतों से बचा जाया जा सकता है।
उधार एक बड़ी खास सुविधा है क्योंकि यह आपको उस चीज का मालिक बना देती है जिसके आप मालिक नही है और न वो आपके पास है। जैसे, आपने किसी से पैसा उधार लिया, अब आपके पास वो ताकत है जिससे आप उस पैसे से जो करना है, कर सकते है पर क्या सच मे वो आपका पैसा है। असल मे नही। मगर फिर भी आप उस रकम का उपयोग कर सकते है।
ऐसा पैसो के अलावा दूसरी वस्तुओं के साथ भी होता है। जैसे आपके पास गाड़ी नही हो और आप किसी और से गाड़ी लेकर निकल जाए, तो कुछ क्षण के लिए आपका हक़ उस गाड़ी पर हो जाता है फिर भले ही वो आपकी गाड़ी न हो।
उधार बदनाम क्यों है।
तो क्या करण है कि जो व्यवस्था बड़ी काम की और उपयोगी है, वह बहुत बादनाम हो चुकी है। जिसका नाम सुनते ही लोग सतर्क हो जाते हैं।
दरअसल इस महंगाई के दौर में व्यक्ति एक-एक रुपया जोड़ता है जो उसने बड़ी मेहनत के बाद कमाया था। जब वो पैसा यूँ ही किसी को उधारी देने के कारण चला जाये तो बड़ा दुख होता है।
उधार देने के कुछ मुख्य कारण होते है।
1. किसी की सहायता करना।
व्यक्ति अपने निजी संबंधों के कारण सामने वाले व्यक्ति पर दया और सहायता के भाव से उधार दे देता है। कुछ लोग इसे अपनी नैतिक जिम्मेदारी भी समझते है कि सामने वाले से उम्मीद से पैसा मांगा है तो मदद जरूर करना चाहिए।
2. संबंधों को बचाने के लिए।
कुछ लोग आतंगिलानी के भाव से बहुत जल्दी प्रभावित हो जाते है। ऐसी परिस्थिति में वो सोचते है कि अगर सामने वाले कि उन्होंने मदद नही की तो उनके संबंध ख़राब हो जाएंगे। फिर भले ही उनका मन न हो पर तब भी वो ऐसे जाल में फस कर उधार दे देते है।
3. किसी तरह के निजी फायदे के लिये।
कुछ लोग अपने फायदे के लिए उधार दे देते है। यह एक तरह का सौदा होता है जिसमे उधार लेने वाला, उधार देने वाले को कुछ टके का व्याज देता है। इसके साथ उधारी देकर अपने किसी काम को करवाने की भी कोशिश रहती है।
उधारी बड़ी दुखदायी है।
सोचकर देखिये कि आपने मेनहत कर पैसा जोड़ा। फिर कोई आया और एक झटके में सब लेकर चला गया। यह चीज़ और भी दुखदायक होती है जब व्यक्ति बिना किसी निजी स्वार्थ के, बस भरोसे और सहायता की भावना से व्यक्ति को उधार देता है। मगर जब वो अपने पैसे मांगता है तो वो उसे आसनी से नही मिलते।
ऐसी परिस्थितियों में व्यक्ति की भावनाओं को बड़ी ठेस पहुँचती है और उसके पैसे वापस न मिलने का डर भी शुरू हों जाता है। यह बहुत बड़ा कारण है की उधार शब्द लोगों के लिए नाकारआत्मक बन गया है।
उधार से संबंधित लोगो के साथ हुई घटना, उसका अनुभव और भावनाओं के अघात के कारण व्यक्ति दोबारा से इस चमेले मे नही पड़ना चाहता।
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उधार को खैरात समझते है लोग।
भारत मे लोगो के अंदर ‘सिविक सेंस’ की भारी कमी है। यही कारण है कि भारत में आंतरिक रूप से जमीनी हकीकत अच्छी नही है। लोगों को बस बाकि दुनिया और सरकार से ही उम्मीद होती है, उन्हें खुद कुछ नही बदलना न ठीक से जिम्मेदारी लेना है।
आज भी एक बड़ा वर्ग ऐसा है जहाँ लोग उधारी में ली गयी चीजो को खैरात समझते है। उधारी में अगर किसी से पैसे लिए है तो पैसे लेने के बाद उन्हें चिंता ही नही होती कि लौटाना भी है। किसी की गाड़ी चलाने के लिए मांगी तो उसकी खुदकी गाड़ी की तरह चिंता नही करते। यह रवैया भारतीयों के खून के अंदर भर चुका है इसी कारण से लोग अपने घर को साफ रखते है मगर शहर को नही। अपने घर के टॉयलेट में पानी डालते है मगर बाकि जगह नही।
उधार में पैसा लेने वाले की जिम्मेदारी बनती है की तय समय में पैसे चुका दे मगर आप अपने आसपास के लोगों से पूछेंगे तो आपको पता चलेगा की जितने लोगों की भी उन्होंने सहायता की है आधे से ज्यादा ऐसे लोग होते हैं जो समय पर कभी भी पैसा नहीं लौटाते और कुछ तो ऐसे होते हैं की अगर आप उनसे पैसा मांगे तो वो उल्टा आपको ज्ञान देना शुरू कर देते हैं।
पैसे मांगने में आती है शर्म।
आज के समय सबसे ज्यादा परेशान सज्जन पुरुष ही होता है। ऐसे सज्जन व्यक्ति को जरूरत पड़ने पर भी किसी दूसरे से उधार लेने में शर्म आती है। इससे भी खराब परिस्थिति तब होती है जब यह किसी को उधार दे और वो न लौटाए। ऐसे में सज्जन व्यक्ति को अपने पैसे ही लेने में शर्म आती है।
ऊपर से सज्जन आदमी को ही लोग उधार के नाम पर ज़्यादा ठग लेते है क्योंकि अक्सर यह अपने पुराने अनुभवों को भुलाकर नए व्यक्ति को उधार दे देते हैं।
बुरा उन लोगो के लिए लगता है जो बिना किसी लोभ-लालच के सिर्फ सहायता करने के उद्देश्य से किसी की मदद करते है। जब उनका पैसा वापस नही मिलता तो ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति का भरोसा टूट जाता है और वो फिर कभी किसी को उधार नही देता। मगर इसका नुकसान यह है कि भविष्य में जब भी उसके सामने ऐसा कोई जरूरतमंद आएगा तो उसके पुराने अनुभव उधार देने से रोक देंगें।
उधर में चलने वाले कुछ बहाने।
व्यक्ति जब उधार लेता है तो उसके रावैया में समपर्ण होता है। ऐसा लगता है मानो आपके कहने पर वो अपना कलेजा निकाल रख देगा। कुछ इसी तरह की बाते आपको सुनने को मिलेंगी जब आप किसी को पैसे उधार देंगे।
- एक जगह से पैसा आने वाला है।
- दो दिन में आ जाएगा, फिर तुमको देता हाउस।
- बैंक अकाउंट में पैसे रखे हुऎ हैं पर सब कुछ लॉक हो गया है। पैसे निकल नहीं रहे है। छुट्टी के बाद जैसे ही बैंक खुलेगा मैं तुमकॊ ला के देता हूं।
- बस दो दिन में यह काम हो जाएगा और तुम्हारे पैसे में वापस ला के दे दूंगा।
- अगले महीने की तन्खा खाएगी तो सबसे पहले तुम्हारे पैसे दूंगा।
- घर में ताबियत बिगड़ गई थी तो उसी में सब परेशान थे।
- तुम्हारी ही व्यवस्था में लगा हूँ, जल्दी देता हूँ।
- भरोसा रखो इतनी सी रकम के लिए अपने संबंध थोड़ी खराब करूंगा।
- आज तक कभी जरूरत नही पड़ी। बस समय इस बार थोड़ा खराब है। अभी मदद कर दो फिर तुमकॊ देता हूं।
- जरा इतने पैसे देना अभी देता हूं।
कुछ लोग पैसे लेने के बाद ऐसे हो जाते है मानो उन्होंने उधार लेकर कोई बड़ा एहसान किया हो।
- अरे कोई इतनी बड़ी राकम थोड़ी है जितने बार तुम मुझे बोल रहे हो।
- तुम्हारे पैसे लेकर भाग थोड़ी रहा हूँ। जब आएंगे तो दे दूंगा।
- इतने से पैसों के लिए ऐसे मरे जा रहे हो। दे दूंगा, अब रूक जाओ थोड़ा।
- बार-बार फोन लगा के परेशान मत करो। जब हो जाएंगे तो ला के दे दूंगा।
हालांकि यह स्तिथि तब की है जब व्यक्ति आपका फ़ोन उठाये क्योंकि ज्यादातर मामलों में लोग फ़ोन उठाना ही बंद कर देते है। फिर आपको उनके घर या कार्यालय जाना पड़ता है। मतलब मदद करो आप और परेशान भी आप ही हो।
जब आसानी से पैसा नही मिलता तो मजबूरी में उधार देने वाले को नया रूप अपनाना पड़ता है और सामने वाले कि बेज़्ज़ती करनी पड़ती है। जब व्यक्ति सख्त होकर पैसा मांगता है तो उल्टा लोग लेनदार को ही नर्म होने को कहते है। मेहनत से पैसा आपने कमाया, संबंधों के नाते आपने मदद की, अब आपका पैसा लेने में आपको ही परेशानी हो रही है और जब आप टेढ़ी उंगली से घी निकालते है तो दुनिया उल्टा आपको ही दोष देती है।
क्या उधार देना बंद कर दे?
सीधा उत्तर देखा जाए तो हाँ, आपको उधर लेने और देने दोनों से बचाना चाहिए। मगर जैसा की बताया गया है उधार एक व्यवस्था है तो इसकी संभावनाएं बहुत है की आपका कोई खास मित्र या आपके रिश्तेदारों को उधार की आवश्कता पड़े। ऐसे मामले में आप उनकी सहायता नहीं करेेंगे तो उन्हें भी बुरा लगेगा।
यह हो सकता है कि वो लोग बाकि उन डिफॉल्टर लोगों जैसे ना हो जो पैसा लेने के बाद लौटाते नहीं है। तो उधार किसे देना चाहिए, इस बात पर ध्यान देना जरूरी है।
- जिसे आप अच्छे से जानते हो और हफ्ते, महीने या कुछ दिनों के अंतराल में जरुर मिलते हो।
- उधार देने के पहले जिस व्यक्ति को उधार दे रहे है उससे जुड़े हुऎ लोगों से उसके बारे में जानकारी प्राप्त करें कि उसका लेनदेन लोगों से कैसा रहा है।
- किसी चीज की अगर गारंटी आपको सामने वाला देने को तैयार हो तो गारंटी जरूर ले। जैसे चेक या किसी तरह की कोई वास्तु ताकि सामने वाले को भी अपनी जिम्मेदारी ज्ञात रहे।
- वो क्या काम करते है। क्या उनका कोई व्यवसाय है या फिर नौकरी है।
सारी चीजों का लिखित हिसाब रखें और संभव हो तो उन्हें व्हाट्सएप में समय-समय पर भेज भी दे ताकि वो अपनी बात से कभी पलट न पाए।
विशेष रूप से ध्यान रखे कि उतना ही पैसा दे जितना आप खो सकते हो।
इन लोगों को कभी ना दे उधार।
- जो ज्यादा शराब पीते हैं या किसी भी तरह का नशा करते हैं।
- जो जुआ, सट्टा, बैटिंग एप्स में पैसे लगाते हैं।
- जिनके पास खुद का कोई काम नहीं और लोगों के बीच में बदनाम हो।
इन सब के बाबजूद भी उधार देने के बाद मन मे चिंता लगी रहती है। जो स्वाभाविक है। यह सारी चीज भरोसे पर टिकी हुई है और भरोसा कभी नही तोड़ना चाहिए।
यह समझने योग्य बात है कि हर व्यक्ति का पैसा उसकी मेहनत से कमाया हुआ होता है इसलिए कभी भी अगर आप किसी से उधार लेते है तो कोशिश करे कि उसे समय से लौटा दे। अगर किसी कारणवश पैसो की व्यवस्था नही हो पाई तो सामने वाले को झूठे दिलासे के बदले उसे सब सच बताकर किश्तों में पैसे देने जैसे हल को निकालने का प्रयास करे।
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