Rohit Vemula Bill

कर्नाटक सरकार बहुत जल्द कर्नाटक विधानसभा में Rohit Vemula Bill पेश करने वाली है और इस बात की पूर्ण संभावना है कि यह बिल बड़े आसानी से कर्नाटक विधानसभा में पारित हो जाए।

इस बिल की चर्चा न सिर्फ़ कर्नाटक में हो रही हैं बल्कि पूरे भारत के लोग इस बिल की चर्चा कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी तो यह भी कह रही है कि कर्नाटक में इस बिल को बनाने के बाद उन राज्यों में भी पेश किया जाएगा जहां कांग्रेस की सरकार है। उसके बाद अगर केंद्र सरकार कांग्रेस की बनती है तो पूरे देश मे इस बिल को लाया जाएगा।

आखिर क्या है Rohit Vemula Bill

रोहित वेमुला बिल को समझने से पहले आपको यह जानना जरूरी है कि रोहित वेमूला कौन था। रोहित वेमुला हैदराबाद विश्वविद्यालय में पढ़ने वाला पीएचडी का एक छात्र था जो अंबेडकरवादी विचारधारा को मानता था। रोहित दलितों की हक की बात करता था और वे अम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन का नेता था।

मगर 17 जनवरी 2016 को उसने आत्महत्या कर ली। इसके साथ अंत में यह साबित हुआ कि रोहित कोई दलित नहीं बल्कि ओबीसी समुदाय से आने वाला व्यक्ति था। उसने फर्जी SC जाति प्रमाणपत्र बनवा रखा था जिसका उसने हर जगह उपयोग भी किया गया था। आत्महत्या के मामले में तेलंगाना पुलिस ने 3 मई 2024 को तेलंगाना उच्च न्यायालय में इस मामले की क्लोजर रिपोर्ट पेश की थी । इस रिपोर्ट में बताया गया था कि रोहित ने अपनी असली जाति उजागर होने के डर से आत्महत्या की थी क्योंकि वो अनुसूचित जाति (एससी) से संबंधित नहीं था।

इस मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, विधान परिषद सदस्य एन रामचंद्र राव, सिकंदराबाद के पूर्व सांसद और हरियाणा के वर्तमान राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के नेताओं समेत पूर्व कुलपति अप्पा राव को दोषमुक्त कर दिया था।

इस क्लोजर रिपोर्ट में बताया गया था कि “रिकॉर्ड में ऐसा कोई तथ्य या परिस्थिति मौजूद नहीं है जिसके कारण उसे आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा और उसकी मौत के लिए कोई ज़िम्मेदार नहीं है। उसकी अपनी समस्याएँ थीं और वह सांसारिक मामलों से खुश नहीं था। अगर वह विश्वविद्यालय के फैसले से नाराज़ होता, तो निश्चित रूप इस संबंध में संकेत देता। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। इससे पता चलता है कि उस समय विश्वविद्यालय में जो हालात थे, वे रोहित की मौत का कारण नहीं थे।”

रोहित वेमुला यह बात जनता था कि वह अनुसूचित जाति से नहीं था और उसने अपनी माँ के नाम से अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र बनवाया था। रिपोर्ट के अनुसार रोहित वेमुला भय में था क्योंकि इसका खुलासा करने पर उसकी शैक्षणिक डिग्रियाँ छिन सकती थीं और शायद मुकदमा भी चलाया जा सकता था।

रोहित वेमुला के पिता का मानना है कि रोहित वेमुला की हत्या की गई थी और वामपंथी समूहों द्वारा उनके बेटे की मौत का फायदा उठाकर मोदी सरकार को टारगेट किया जा रहा है। इसी के साथ 2017 में, आंध्र प्रदेश सरकार ने रोहित वेमुला का अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र इस दलील पर रद्द कर दिया था कि वह वास्तव में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का सदस्य था। सरकार का तर्क था कि अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र “धोखाधड़ी” कर बनवाया गया था।

क्या है रोहित वेमुला बिल

रोहित वेमुला विधेयक जो कर्नाटक सरकार पारित करने वाली है वह दलित, आदिवासी, ओबीसी एवं अल्पसंख्यक (मुस्लिमो और ईसाईयो) के संरक्षण और उनके खिलाफ होने वाले भेदभाव और सभी को समान शिक्षा के अधिकार की बात करता है।

इस विधेयक के पारित होने के बाद राज्य की पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर पाएगी और इस बिल के अंतर्गत आने वाले मामले गैर जमानती होंगे।

सरल भाषा में अगर बात करें तो उदहारण के लिए किसी SC, ST, OBC या अल्पसंख्यक (मुस्लिम या ईसाई) से आने वाला कोई छात्र पुलिस के पास जाकर यह शिकायत करता है कि किसी गैर दलित, गैर अल्पसंख्यक या गैर आदिवासी (सीधा मतलब सवर्ण) व्यक्ति ने उसके साथ किसी तरह का भेदभाव किया है, उसे लिए जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल किया है या कुछ भी ऐसा किया है जिससे उसकी भावनाओं को ठेस पहुँची है तो इस मामले में पुलिस बिना जाँच के तुरंत उस व्यक्ति को गिरफ्तार करेगी और उसे जेल भेज दिया जाएगा।

यह कानून गैर जमानती होगा (Non-Bailable) जिसका मतलब है व्यक्ति को तुरंत बैल नही मिलेगी, उसे पहले जेल जाना ही पड़ेगा, फिर अदालत में पेश होकर ही उसे जमानत पर छोड़ा जाएगा।

एक खास बात यह है कि उस व्यक्ति को तब तक जमानत नही मिलेगी जब तक पुलिस अदालत में चार्जशीट दाखिल नही करती। जिस तरह के देश के हालात रहे हैं उस हिसाब से ऐसे कई उदाहरण पहले भी सामने आए है जहां पर कई सालों तक पुलिस ने मामलो में चार्जशीट दाखिल ही नही की। अगर दलितों को खुश करने के लिए राज्य सरकार का दवाब पुलिस पर चार्जशीट न बनाने को लेकर आता है तो पुलिस लंबे समय तक चार्जशीट ही नही बनाएगी और व्यक्ति बिना जुर्म के जेल में पड़ा रहेगा।

इतना ही नहीं पहली बार इस अपराध को करने पर कम से कम 1 साल की सजा और ₹10000 रुपये जुर्माना लग सकता है। यह जुर्माना राशि आरोपी द्वारा पीड़ित को दी जाएगी और मामले के अनुसार जमानत की राशि ₹10,000 से लेकर ₹1,00,000 रूपयो तक हो सकती है। दोबारा अपराध करने पर इसमें 3 साल की सजा और ₹100000 जुर्माना देने का प्रावधान है।

क्या यह बिल सवर्णो के खिलाफ साजिश है?

देश के अंदर पहले से ही ST और SC के लिए SCST एक्ट मौजूद है। कोई भी सरकार इस एक्ट के अंदर बदलाव के बारे में सोच भी नहीं सकती। जब भी सरकार या कोर्ट ने इन एक्ट के अंदर बदलाव के बारे में सोचा है तो भीषण हिंसक आंदोलन देखने को मिले है।

हालांकि आंकड़ों को देखें तो यह बात कोर्ट ने भी मानी है कि एससी एसटी एक्ट का दुरुपयोग पूरे देश भर में जोरों से हो रहा है।

पर यहां सवाल उठता है कि देश के अंदर एससी और एसटी के लिए पहले से ही कानून है तो इस नए एक्ट की क्या जरूरत है। क्योंकि एससी एसटी एक्ट यूनिवर्सिटी के अंदर भी लागू होता है तो इस नए कानून को क्यों लाया जा रहा है।

पूरे कर्नाटक राज्य के अंदर सवर्ण जनसंख्या लगभग 10% के आसपास है। 90% जनसंख्या अन्य जाति और धर्म के लोगों की है।

जिस तरीके से एक्ट को कर्नाटक सरकार प्रचार कर रही है उस हिसाब से ऐसा लगता है कि आज 2025 में भी सामान्य वर्ग के लोग जो मात्र 10% है वह कर्नाटक के अंदर 90% जैसी बड़ी आबादी के साथ भेदभाव कर रहे हैं या उन्हें जाति सूचक शब्दों से बुलाते हैं। हालांकि देश का हर व्यक्ति यह बात जानता है कि कुछ स्थानों को छोड़ दिया जाए तो पूरे देश के अंदर जाति आधारित भेदभाव ख़त्म हो चुका है। लोगो के आपसी व्यवहार इतने गहरे हो गए है कि वो जाति के आधार पर मतभेद नही रखते।

आज 2025 के इस युग मे ऐसा कहना कि दलितों के ख़िलाफ़ सवर्ण भेदभाव करते है वो भी जब पूरे देश के अंदर Sc St एक्ट लागू है, एक बेबुनियाद बात और दलित मतदाताओं को अपनी ओर लाने का प्रयास लगता है।

SC, ST और OBC के साथ मुस्लिम और ईसाइयों को भी किया गया शामिल।

इस बिल के प्रावधानों को देखें तो इसमें सिर्फ हिंदू सवर्णो को छोड़ बाकि सभी जाति के लोगों को शामिल किया गया है। देश के अंदर पहले से ही एसटी एससी के लिए एक्ट था मगर इस नए एक्ट के अंदर जिस तरीके से मुस्लिम और ईसाइयों को डाला गया है उससे साफ जाहिर होता है कि कर्नाटक कांग्रेस सरकार मुसलमानों को खुश करने का प्रयास कर रही है।

अपने वोट बैंक की चिंता के कारण उन्होंने इस विधेयक को बड़े संयोजित तरीके से बनाया है। इस बिल में ईसाइयों को इसलिए डाल गया ताकि कोई हल्ला ना हो।

सवर्णों के खिलाफ हिंसा और नफ़रत बढ़ाने का काम करेगा यह बिल।

बिल के प्रावधानों के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी निजी दुश्मनी और बदला लेने के उद्देश्य से किसी भी सामान्य वर्ग के व्यक्ति के खिलाफ शिकायत करने पहुंच जाएगा। जिससे जो देश के अंदर अलग-अलग जाति के बीच सामंजस्य बैठ रहा है और सामाजिक मतभेद कम हो रहे हैं उसे बड़ा धक्का लगेगा।

किसी आपसी विवाद के चलते अगर कोई दलित व्यक्ति किसी सामान्य वर्ग के व्यक्ति के ऊपर अगर इस एक्ट के अंतर्गत मामला दर्ज करवाता है और उस समान्य वर्ग के व्यक्ति को जेल जाना पड़ता है तो उसके बाद उसे कोर्ट से जमानत लेनी पड़ेगी।

अगर मजिस्ट्रेट ने जमानत दे दिया तो ठीक, नहीं तो उसे एक लंबे समय तक जेल में ही बिताना पड़ेगा। अगर जैसे तैसे वह जेल से बाहर आ जाए तो उसके बाद उसके ऊपर जेल जाने का ठप्पा लग जाएगा। जो सरकारी नौकरियां वैसे ही समान्य वर्ग के लिए, आरक्षण के चलते कम होती जा रही हैं उसमें इस समान्य वर्ग के व्यक्ति को बड़ी कठिनाइयां होगी। यह संयोजित तरीके से सामान्य वर्ग को पूरी तरह से तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।

इसलिए इस बिल को किसी को न्याय दिलाने वाला नहीं बल्कि एक साजिश के रूप में देखा जा रहा है।

राहुल गांधी की दलित राजनीति का परिणाम है यह बिल।

Rohit Vemula Bill
रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला 1 नवंबर, 2022 को हैदराबाद में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुईं थी।

राहुल गांधी ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया को पत्र लिखते हुए उनसे कहा था कि रोहित वेमुला के नाम पर एक बिल होना चाहिए। जिसके जवाब में सिद्दारमैया ने राहुल गांधी को पत्र लिखते हुए जवाब दिया कि उनकी सरकार इस पर विचार कर रही है और जल्द वह एक कानून पारित करेंगे।

राहुल गांधी देश भर में घूमते हुए खुद को दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों का मसीहा बता रहे हैं और अपने इस उद्देश्य के लिए वह लगातार मंचों से दलितों के हित की बात करते आए है। लेकिन मजे की बात यह है कि दलितो के लिए जिस बिल को रोहित वेमुला बिल कहा जा रहा है असल में वह रोहित वेमुला दलित नहीं बल्कि एक ओबीसी व्यक्ति था।

दलितों को अपना वोट बैंक बनाने, मुसलमानों को संरक्षण देने और हिंदू वोट बैंक को तोड़ने के लिए राहुल गांधी ऐसा कर रहे हैं। ऐसी रणनीति का इस्तेमाल अंग्रेजों ने किया था कि फूट डालो और राजनीति करो।

हिंदू एक होने से कांग्रेस को खतरा।

यह बात साफ है कि 2014 के बाद जब से हिंदू मतदाताओं ने एक साथ होकर वोट डालना शुरू किया तब से लगातार कांग्रेस को हानि ही पहुंची है।

कांग्रेस के कोर वोटर मुस्लिम है। वह एक साथ होकर वोट डालते हैं मगर हिंदूओं का वोट कांग्रेस को नहीं मिल रहा था। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के पास एक ही रास्ता था। वह था हिंदुओं को विभाजित करना। इस वजह से ही राहुल गांधी लगातार दलितों के पक्ष की बात कर रहे हैं और मौजूदा सरकार को ऐसे कदम उठाने में मजबूर कर रहे हैं जिससे हिंदू धर्म को मानने वाले लोग विभाजित हो जाये और एक साथ होकर भाजपा को वोट न दे।

जाति आधारित जनगणना भी उसी का हिस्सा है। कोई भी पार्टी दलितों के खिलाफ इसलिए नहीं बोलती क्योंकि दलित एक बहुत बड़ा वोट बैंक है और सवर्णो के हित में कोई बात इसलिए नहीं करता क्योंकि उनकी जनसंख्या या वोट कम है।

सवर्णों में मुख्य रूप से ब्राह्मणों को निशाना बनाया जाता हैं। ना कांग्रेस को, न बीजेपी को, ना अन्य किसी पार्टी को ब्राह्मणों की चिंता है। अम्बेडकरवादियों के मन मे जो ब्राह्मणों के खिलाफ नफ़रत है वो साफ़ दिखाई देती है। ब्राह्मणों के खिलाफ अभद्र टिप्पणियां होती है वो भी किसी से छुपी नही है। समानता के अधिकार के तहत हर जाति को संरक्षण देना चाहिए और ऐसे कानून भी बनाना चाहिए जिसमें ब्राह्मणों के ऊपर अभ्रद टिप्पणी करने वालो के ऊपर कार्यवाही हो।

मगर कोई पार्टी ऐसा नही करेगी। सबको अपना वोट बैंक देखना है। राहुल गांधी विपक्ष में बैठे हुए है तो विपक्ष में बैठकर वह देश में मौजूद सभी हिंदुओं को बांटने में लगे हुए हैं।

उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कम जनसंख्या वाले सवर्ण इस बारे में क्या सोचते हैं और ऐसी बातों से उनको कितनी नफ़रत का सामना करना पड़ेगा। राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण है कि जिस समुदाय को, जिस जाति को आसानी से बिचकाया जा सकता है, उन्हें बहलाकर, उनके तथाकथित हक़ की बात कर उनका वोट ले लिया जाए।

सिर्फ यही कारण से मंचों पर जाकर राहुल गांधी सवर्णो के खिलाफ लगातार बोलते आ रहे हैं और दलितों को खुश करने का प्रयास करते हैं। रोहित वेमुला बिल उसी का पूर्ण रूप से नतीजा है।

बीजेपी भी अपना वोट बैंक नहीं खोना चाहती सिर्फ इस कारण से वह लगातार हिंदू विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा दे रही है और निश्चित ही इसका नुकसान भाजपा को स्वयं होगा।

कर्नाटक में पेश होने वाला है बिल।

देखना होगा कि जब कर्नाटक विधानसभा में बिल पेश होगा उस समय बीजेपी क्या करती है। इस बात की संभावना बहुत ज्यादा है कि यह बिल विधानसभा से बड़े आसानी से पास हो जाए। बीजेपी के विधायक इसका विरोध नही करेंगे क्योंकि पिछले कुछ दिनों बीजेपी अंबेडकर और संविधान का नारा लेकर घूम रही है और दलितों को खुश करने में लगी है।

राजनीति के चलते विभाजित होंगे हिंदू।

किसी भी हिन्दू ग्रंथ में आपको कभी भी जाति का जिक्र नहीं मिलेगा। वर्ण व्यवस्था का जिक्र मिलता है जो कर्म आधारित होती थी।

अंग्रेजों ने यह समझ लिया था कि अगर उन्हें भारत मे राज करना है तो हिंदू समुदाय को विभाजित करना होगा। तब उन्होंने Cast या जाति शब्द का उपयोग कर यहां की सामाजिक व्यवस्था में डाल दिया और हिंदुओं को अलग-अलग जाति में विभाजित कर दिया।

इस विचारधारा के निशाने पर ब्राह्मण होते है क्योंकि ब्राह्मण वह समुदाय था जो लगातार धर्म की रक्षा करने के लिए खड़ा रहता था। देश में मौजूद क्रिश्चियन मिशनरी और कुछ आतंकी इस्लामी संगठन के लिए सबसे बड़ी बाधा ब्राह्मण है। इसलिए ब्राह्मण समुदाय को पूरी तरीके से तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।

फिर चाहे आरक्षण बढ़ाकर उनकी सरकारी कामों में हिस्सेदारी कम करने की बात हो या फिर सामाजिक न्यायिक व्यवस्था में उनके अधिकारों के हरण करने की बात हो।

देश में कई और मुद्दे हैं मगर कोई भी पार्टी उन पर ध्यान नहीं देना चाहती। आज की स्थिति में भारत की यह दशा हो गई है की सारी राजनीतिक पार्टी सिर्फ जाति पर बात करती हैं या यह वादा करती है कि उनकी सरकार बनने के बाद फ्री का राशन, फ्री के पैसे कौन कितने देगा। ऐसी स्थिति में देश के बहुत बुरे हाल हो जाएंगे क्योंकि सारी राजनीतिक पार्टियों सिर्फ इसी दौड़ में शामिल है।

कोई भी राजनीतिक पार्टी न देश के भ्रष्टाचार को कम करेगी, ना जो सरकारी खर्च होता है उसे कम करेगी और न हीं ऐसा कोई सिस्टम लाएगी जिससे देश का उद्धार हो सके। सत्ता के भूखे राजनीतिक दल अपने फ़ायदे के लिए इस देश की जनता को आपस में लाडवा कर खत्म करने से भी नहीं रुकेंगे।

इस तरह का बिल जो जातियों में भेदभाव को बढ़ावा देगा और एक समुदाय के खिलाफ अन्याय को बढ़ाएगा, उसे रोकने के लिए कोई भी राजनीतिक पार्टी सामने से आकर खड़ी नहीं होगी, यही इस देश का दुर्भाग्य है।

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By Mayank Dubey

मयंक एक बहुआयामी लेखक, विचारशील कंटेंट क्रिएटर और युवा विचारक हैं एवं "मन की कलम" नामक हिंदी कविता संग्रह के प्रकाशित लेखक हैं। वे धर्म, भारतीय संस्कृति, भू-राजनीति और अध्यात्म जैसे विषयों में भी लिखते है। अपने यूट्यूब चैनल और डिजिटल माध्यमों के ज़रिए वे समय-समय पर समाज, सनातन संस्कृति और आत्मविकास से जुड़े विचार प्रस्तुत करते हैं।

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