साल 2022 में आयी फ़िल्म गंगूबाई काठियावाड़ी, मुंबई के एक वैश्यालय की पूर्व नेता गंगूबाई के जीवन की कहानी है जिसमे गंगूबाई की भूमिका आलिया भट्ट ने निभाई थी।
आलिया भट्ट को चाहने वालो की संख्या अच्छी खासी है और इस तरह की फिल्में एक खास वर्ग के लोगो को बहुत पसंद आती है जो खुदको बुद्धिजीवी और विकासशील मानते है। कोई महिला प्रधान फ़िल्म या चरित्र इनके सामने आने पर यह उसके गुणगान में लग जाते है फिर भले ही उस फिल्म या चरित्र से समाज का नुकसान ही क्यों न हो। इसी वजह से फिल्म ने बॉक्स ऑफिस में अच्छा प्रदर्शन किया था।
क्या कहती है फ़िल्म की कहानी।
यह फ़िल्म एस हुसैन जैदी की किताब ‘Mafia Queens of Mumbai‘ पर आधारित थीं। फ़िल्म की कहानी के अनुसार प्रेमी या पति द्वारा गंगूबाई को वैश्यावृत्ति की दुनिया मे बेच दिया जाता है और उसके बाद वो इसे अपनाकर धीरे-धीरे उस पूरे इलाके की बॉस बन जाती है। आगे चलकर वो मुम्बई के उस समय के डॉन करीम लाला को अपना भाई बना लेती है और करीम लाला गंगूबाई की बहुत मदद करता है।
फ़िल्म अनुसार गंगूबाई वैश्याओं के हक़ की लड़ाई लड़ती है और समाजिक कार्य मे लग जाती है।
क्या सच, क्या झूठ – सवाल बहुत खड़े होते है।
यह ज़ाहिर है कि फिल्म गंगूबाई के जीवन पर आधारित थी तो फिल्म के अंदर उनकी भूमिका को अच्छे से दिखाना जरूरी था मगर फिल्म में दिखाए गए कुछ तथ्यों पर बहुत सवाल खड़े होते हैं।
जैसे, अगर मज़बूरी में गंगूबाई को इस वेश्यावृत्ति की काली दुनिया में धकेल दिया गया था तो वह वहाँ से कभी क्यों नही भागी?
फिल्म के कुछ सीन में ऐसा भी दिखाया गया है कि वह खुलकर अपनी दूसरी वेश्या साथियों के साथ फिल्म देखने जाती हैं, मुम्बई में घूमती-फिरती है। अगर उन्हें जानबूझकर ऐसे घिनौने कार्य में धकेल दिया गया था तो अवसर मिलने पर उन्हें इलाके को छोड़कर भाग जाना चाहिए था।
गंगूबाई वापस अपने घर क्यों नहीं भागी?
जब वह पूरे इलाके की मालकिन बनी तो उन्होंने वेश्यावृत्ति के काम को पूरी तरीके से बंद क्यों नहीं करने दिया। जबकि एक समय ऐसा भी आया था कि सरकार इस पूरे काम को वहां से बंद कर उस इलाके का विकास करना चाहती थी मगर इस बात का विरोध स्वयं गंगूबाई ने किया।
तथाकथित तथ्यों की माने तो गुजरात मे उनका खुदका परिवार बहुत संपन्न और सभ्य था तो जब घर की जवान बेटी गायब हुई तो क्या परिवार वालों ने उसे ढूंढने का प्रयास नहीं किया?
या उसी के हाल पर छोड़ दिया?
फ़िल्म कम, चरित्रों की व्हाइट वाशिंग ज़्यादा।
फ़िल्म के अंदर गंगूबाई के करैक्टर को शुरू से ही एक अबला और हालातों की मारी लड़की के रूप में दिखाया गया है जिसे उसके आशिक़ ने धोका दिया था मगर उस दौर में परिवार को धोखा देकर घर से भागने वाली लड़की या तो बहुत बोल्ड और चालाक होगी या फिर वो अपने हीरोइन बनने के सपने में इतनी गुम होगी कि उसे अंजाम और अपने परिवार की कोई चिंता ही नही थी।
यह कहना गलत नही होगा कि गंगूबाई ने उस कमाठीपुरा इलाके में वेश्यावृत्ति के पूरे खेल को अपने हाथों में लेकर अच्छे से नियंत्रित किया जो पहले कोई दूसरा नही कर पाया था।
उसके बाद उस वक़्त के मुम्बई के डॉन करीम लाला को एक रक्षक के रूप में दिखाया गया है। एक हिंदू महिला का रक्षक। करीम लाला अपने मज़हब को अच्छे से मानता था और वो मुंबई में न सिर्फ डॉन था बल्कि वहाँ के मुस्लिम समुदाय के नेता के रूप में भी देखा जाता था।
करीम लाला की पठान गैंग के ऊपर हत्या, हफ़्ता वसूली, सुपारी से लेकर हत्याएं करना जैसे गुनाहों के कई मामले थे। जो लोग करीम लाला के गुनाहों के शिकार बने, उनका दर्द सिर्फ़ वही जानते होंगे मगर फ़िल्म के अंदर करीम लाला का चरित्र अलग तरीके से पेश किया गया और निश्चित ही कुछ लोगो को यह आदमी हीरो जैसा लगने लगा होगा।
अजय देवगन को इस भूमिका में इसलिए लिया गया होगा कि जिस व्यक्ति को भारत की जनता एक हीरो के रूप में जानती है उसे जब एक गैंगस्टर के क़िरदार में लोग देखेंगे तो यह व्हाइट वाशिंग आसान होगी और उस गैंगस्टर का क़िरदार लोगो को असल जिंदगी में भी हीरो की तरह दिखेगा और लोग उसके गुनाहों को स्वीकार कर लेंगे। ठीक ऐसा ही संजू फ़िल्म में किया गया था।
हालांकि समझने योग्य बात यह भी है कि जो जैसा दिखता है वैसा होता नही है। एक तरफ किसी चीज़ का ऐतिहासिक सच होता है और दूसरी तरफ होता है उसे देखने वाला। इनके बीच जो माध्यम होता है उसके पास इतिहास को बदलकर दिखाने की शक्ति होती है। तथ्यों को अपने फ़ायदे के लिए किताबों और फिल्मों में घुमाकर दिखाना कोई नई बात नही है। भारत मे यह काम फिल्मों के डायरेक्टर और कुछ इतिहासकार बहुत पहले से करते आये है।
गंगूबाई में नई बातों को क्यों जोड़ा गया?
फ़िल्म के अंदर गंगूबाई का अफेयर एक मुस्लिम टेलर लड़के अफसान से हो जाता है। यह लड़का और गंगूबाई बहुत करीब भी आ जाते है मगर असलियत इससे अलग है।
यह फ़िल्म किताब ‘Mafia Queens of Mumbai‘ पर आधारित थी और गंगूबाई की तथाकथित कहानी इसी किताब में देखने को मिलती हैं। मगर इस क़िताब के अंदर भी गंगूबाई के जीवन का ऐसा कोई किस्सा नही है जहाँ उनका प्रेम संबंध किसी मुस्लिम लड़के से हो।
फ़िल्म के अंदर जो चित्रण गंगूबाई का उस टेलर लड़के अफसान के साथ दिखाया गया है वो पूरी तरह से काल्पनिक है।
अब सवाल उठता है कि जब यह फ़िल्म ‘Mafia Queens of Mumbai’ पर बनी थी जिसमे गंगूबाई का जीवन दिखाना था तो एक हिन्दू महिला का किसी मुस्लिम लड़के से संबंध क्यों दिखाया गया।
आलिया भट्ट और उनके मुस्लिम प्रेमी।
यह पहली बार नही है जहाँ किसी फिल्म में आलिया भट्ट के हिन्दू किरदार को मुस्लिम लड़का पसंद आया हो। “कलंक” नाम की एक फ़िल्म में आलिया एक हिन्दू विवाहित महिला होती है और उसे एक मुस्लिम लड़के से प्रेम हो जाता है।
यह तो जग जाहिर है कि आलिया भट्ट की माँ मुस्लिम है और उसके पिता महेश भट्ट ने भी मुस्लिम धर्म अपना लिया है तो निश्चित ही बेटी का झुकाव समझना मुश्किल नही है। इसलिए वो ऐसी स्क्रिप्ट को आसानी से अपनाकर काम कर लेती है।
मानो या न मानो।
किताबों और फिल्मों (मीडिया) के जरिये हमेशा से Subversion किया जाता है। धीरे-धीरे गलत चीजो को ऐसे प्रदर्शित किया जाता है कि वो एक सामान्य हिस्सा बन जाएं। फिर कुछ समय बाद जब कोई इन गलत चीजो का विरोध करता है तो समाज और उस Subversion हुए समूह को यही व्यक्ति गलत नज़र आता है।
भारत मे यह खेल जोरो से चलता आया है और इसे करने वाले बहुत हद तक सफल भी हुए है। आलिया भट्ट कम उम्र की लड़कियों की आइडल है। जब फ़िल्म में अंदर वो ऐसा कुछ करती है तो उसे चाहने वाले लोग भी उसी मार्ग में आँख बंद कर चल देते है।
सच या बस कहानी।
गंगूबाई की पूरी कहानी का कोई ठोस सबूत नही है। जितनी बाते उनके जीवन से जुड़ी मिलती है ज्यादातर वो एस हुसैन ज़ैदी की ‘Mafia Queens of Mumbai’ से ही निकली है। अब क्या सच मे गंगूबाई का कोई सभ्य परिवार था और क्या सच मे उन्हें किसी हिन्दू पुरुष ने मुम्बई लाकर बेच दिया था और क्या सच मे गुनाहों की पठान गैंग चलाने वाला करीम लाला ने बिना किसी सौदे के उनकी सुरक्षा की थी?
ऐसे अनेको सवालों का उत्तर और उनकी सच्चाई गंगूबाई के साथ जा चुकी हैं।
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