कैसा लगेगा जब आपको पता चले कि आपकी पसंद आपकी नहीं होती। जितने फैसला आप अपने पसंद के अनुसार करते हैं असल में यह कोई और आपके लिए लेता है। आप बस इन पसंद को उनके अंजाम तक पहुंचाते हैं। यहाँ पर यह सवाल उठ सकता है कि हम अच्छे निर्णय कैसे ले सकते है ताकि जीवन और बेहतर हो पाए। चलिए देखते है इस विषय में Daniel Kahneman की खोज।
रोजाना हम अनेको बार बहुत सारी चीजों को लेकर चुनाव करते हैं। यह चुनाव इस बात पर आधारित होता है कि हम किस चीज को पसंद और किस चीज को नपसंद करते है।
अनेक विकल्पों में से किसी एक को चुनने के लिए हम उससे जुड़े मापदंडो का उपयोग करते है। मगर इन मापदंड के साथ हमारी भावनाओं और इच्छाओं की भी अहम भूमिका होती है।
कंपनियां उठाती है फ़ायदा।
खरीदारी करते समय यह भावनाएं और इच्छाओं का बहुत असर होता है और यह बात कंपनियों को मालूम है और वो इस बात का खुदके लिए बड़े अच्छे से उपयोग करती है।
कई बार ऐसा भी होता है कि व्यक्ति को मालूम है कि उसे क्या लेना है मगर उसे यह नही मालूम कि क्यों लेना है। उदहारण के लिए लोगो की गाड़ियों की पसंद को देख सकते है। वो बाहरी प्रभाव में आकर गलत गाड़ी ले लेते है और जब उन्हें उनकी गलती का अहसास होता है तो देर हो चुकी होती है।
किसी भी फ़ैसले को लेते समय हमारा दिमाग तेज़ी से बहुत सारे मापदंडों को नाप कर हमारे सामने नतीजा प्रस्तुत करता है और इस नतीजे को दिमाग फाइनल डिसीजन मानकर पेश करता है।
मगर क्या हो जब आपका दिमाग इन मापदंडों को नापने के तरीके में ही गड़बड़ी कर दे और क्या हो कि बाहरी ताकत इन सारी चीजों पर नियंत्रण हासिल कर ले।
चलिए देखते हैं कि कैसे हम किसी चीज को लेकर चुनाव, पसंद या नापसंद करते हैं। कौनसी ऐसी चीजें है जो हमारे फ़ैसले लेने की प्रक्रिया को प्रभावित करती है और हम अच्छे निर्णय कैसे ले सकते हैं।
Daniel Kahneman की खोज।
Daniel Kahneman वो व्यक्ति है जिन्होंने होलोकॉस्ट को देखा है। डेनियल आगे चलकर न्यूयॉर्क बेस्ट सेलर बुक के लेखक बने और इन्होंने इकोनॉमिक्स (अर्थशास्त्र) में नोबेल प्राइज भी जीता था। डेनियल की जिंदगी संघर्षों से घिरी हुई थी मगर उसके बाद भी उनकी खोज देखने एवम समझने लायक है।
2011 में Daniel Kahneman ने हमारे सोचने के तरीकों को दो मोड्स के जरिए समझाया।
यह दो मोड्स इस प्रकार है।
System 1
जो तेज है, भावनात्मक है और इंटूटिव है।
System 2
धीमा है, तार्किक है और सोच समझ कर जानबूझकर लिया हुआ है।

Daniel Kahneman के इस टेबल के माध्यम से आप इन दोनों सिस्टम की विशेषताओं को आसानी से देख सकते हैं। दोनों सिस्टम के काम करने की प्रक्रिया अलग है और इनसे उत्पन्न होने वाले नतीजे भी अलग होते है।
System 1
टेबल देखकर आप यह भी समझ गए होंगे कि ज्यादा बेहतर सिस्टम कौन सा है। मगर इसके साथ जाने वाली बात यह है कि हम ज्यादातर समय सिस्टम वन का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि यह ऑटोमेटिक है। System 1 में हमें ज्यादा दिमाग इस्तेमाल नहीं करना पड़ता, ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती और यह हमारे रोजमर्रा की चीजों के लिए बढ़िया है।
यह तेजी से निर्णय दे देता है मगर इसके साथ ही System 1 हमसे भारी गलतियां भी करवा सकता है। ज्यादातर समय हम लोग सिस्टम वन पर ही निर्भर रहते हैं और इस वजह से हमारी जिंदगी में बहुत सारी गलतियां और खराब निर्णय होते हैं।
System 1 के साथ सोचते समय हमारा दिमाग उस बहुत सीमित जानकारी के साथ निर्णय लेने के लिए निकल पड़ता हैं और अधिक जानकारी की मांग नही करता। न ही यह सवाल करता है कि प्राप्त जानकारी में क्या चीजें छिपाई गयी है।
चलिए इसको एक उदाहरण के जरिए समझने की कोशिश करते हैं। जैसे मान लीजिए कि आपको किसी कंपनी में निवेश करना है। कंपनी के फाउंडर्स आपको जानकारी देते हैं कि उनकी कंपनी को अभी तक एक करोड रुपए की फंडिंग मिल गयी है। उनके प्रोडक्ट की चर्चा बड़े अखबारों में, न्यूज़ चैनल और मैगजीन में हो रखी है। लोग उनके प्रोडक्ट को इस्तेमाल कर रहे हैं और उनका प्रोडक्ट धीरे-धीरे मार्केट के अंदर दिखाई दे रहा है।
यहाँ System 1 के अनुसार इतनी प्राप्त जानकारी से आपको लग सकता है कि इस कंपनी में आपको जरूर निवेश करना चाहिए। मगर आप यहां पर बहुत सारी चीजों को नजरअंदाज भी कर रहे हैं।
कंपनी के फाउंडर्स ने आपको बहुत सी जानकारी दी मगर उन्होंने बहुत सारी चीज नहीं बताई।
उन्होंने आपको नहीं बताया कि फंड जुटाना के पीछे की क्या कहानी थी, उन्होंने आपको नहीं बताया कि पैसे देकर उन्होंने बड़ी मैगजींस, न्यूज़ चैनल में अपने प्रोडक्ट को एक तरीके से ऐड करवाया था। उन्होंने आपको बड़े कंपटीशन के बारे में नही बताया।
आपने यह भी नहीं देखा कि लोग इस प्रोडक्ट को इस्तेमाल करने के बाद जल्द छोड़ भी रहे हैं और इसी के साथ कंपनी हर महीने एक बहुत बड़ी रकम खर्च कर रही है।
System 1 के कारण ही अक्सर हम इन तरह के जाल में फंस जाते हैं और फिर हमें नुकसान का सामना करना पड़ता है।
आपके साथ स्कैम करने वाले इसी बात का फायदा उठाते हैं। वह जाने-अनजाने में आपको System 1 से सोचने पर मजबूर कर देते है।
यहां पर यह चीज को भी ध्यान में रखा जाए कि System 1 भावनाओं के आधार पर फैसले लेता है। जैसे कि किसी बड़ी कंपनी में निवेश करने के विचार में कुछ ऐसी इच्छाए हो सकती है – इससे आपको प्रसिद्ध मिल सकती है, दोस्तों और परिवार में कुछ नया बताने के लिए हो सकता है।
एक दूसरा और बहुत ही समान्य उदहारण देखते है। जैसे मान लीजिए आपके पड़ोसियों और रिश्तेदारों के पास बड़ी कार है और आपके पास गाड़ी नहीं है। मगर जब आप उन लोगो से मिलते हैं तो आपको इस बात का मलाल रहता है कि आपके पास कार नहीं है। आपके परिवार को कहीं जाना होता है तो उसे समय भी आपको कार की कमी खलती है।
इन चीजों को सोचकर आप निर्णय लेते हैं कि आप एक गाड़ी खरीदेंगे। आप निकल जाते हैं गाड़ी खरीदने और एक बड़ी सी गाड़ी जैसे कि आपके रिश्तेदारों और पड़ोसी के पास है, आप ले लेते हैं।
भले ही आपके पास उस बड़ी गाड़ी को लेने के लिए पैसे न हो मगर आज के समय तो हर चीज फाइनेंस हो जाती है। तो कुछ राशि डाऊन पेमेंट के नाम पर जमा कर, 10 सालो की क़िस्त बनवा लेते है।
अब आप गाड़ी घर लेकर आते हैं, आपको बड़ी खुशी होती है और आपके दिल को सुकून मिलता है। मगर यहाँ समझने वाली बात यह थी कि आपने बहुत सारी जानकारियों को ढूंढकर समझने की कोशिश नही की। जैसे जिन रिश्तेदारों और पड़ोसियों के पास वह बड़ी गाड़ियां थी उनकी और आपकी सालाना आय में बहुत ज्यादा अंतर था।
उन पड़ोसियों और रिश्तेदारों के परिवार बड़े थे इसलिए उन्हें बड़ी गाड़ी की जरूरत थी। आपका काम एक छोटी गाड़ी में भी चल सकता था मगर आपने एक बड़ी गाड़ी ली। इसी के साथ बड़ी गाड़ी के रखरखाव और मेंटेनेंस में भी बड़ा खर्च होता है जो आपका बजट बिगाड़ सकता है।
इस मामले में गाड़ी एक जरूरत है मगर उस जरूरत को आप किस तरीके से पूरा कर रहे हैं यह Daniel Kahneman के इन सिस्टम पर आधारित होता है।
System 2
वहीं पर अगर हम गाड़ी लेते समय System 2 का इस्तेमाल करते तो चीज कुछ और होती। आप पहले महत्वपूर्ण चीजों पर ध्यान देते जैसे कि आप कितनी मासिक क़िस्त दे सकते हैं। किस तरह की गाड़ी में कितना मेंटेनेंस लगता है। आपके परिवार की क्या जरूरत है। गाड़ी आप महीने में कितने बार निकालेंगे और कितने दूर तक जाएंगे।
सबसे महत्वपूर्ण, क्या आपका बजट आपको नई गाड़ी लेने की अनुमति देता है?
System 2 धीमा जरूर है मगर इससे लिए गए सारे निर्णय सचेत होते है।
इस System में फैसले लेने के लिए आप हड़बड़ी नही मचाते, अपनी उर्जा लगाते हैं, चीजों को समझते हैं तब जाकर आप किसी निर्णय पर पहुंचते हैं। System 2 से लिये गए निर्णयों में आपको नुकसान की संभावना बहुत कम होती है।
आपकी आय और गाड़ी से जुड़ी जानकारी जब आप सिस्टम 2 के जरिए लेते हैं तो आप ज्यादा जानकारी जोड़ते हैं।
System 1 में सारी चीज आपको बाहरी रूप से बड़े आसानी से मिल जाती हैं। इस गाड़ी को लेने के बाद आपका स्टेटस बढ़ जाएगा, आपको सुकून मिलेगा मगर इसके पीछे की कहानी आप तब देखते है जब System 2 के जरिए सवाल पूछते हैं, जानकारी ढूंढ़ते हैं।
तो अगली बार जब भी कोई निर्णय लें तो एक लम्हे के लिए रुके और खुद से सवाल पूछे कि क्या आपके पास इस चीज से जुड़ी सारी जानकारी है।
Daniel Kahneman के अनुसार कुछ कारण जो आपके फैसलों को प्रभावित करते हैं।
1. Priming
प्राईमिंग आपके फैसले को आसानी से बहुत प्रभावित करती हैं। किसी भी तरह के शब्द, तस्वीर, वीडियो या एक माहौल जो आपके विचारों, भावनाओं और एक्शंस को प्रभावित करती हैं वह सारी चीज प्राईमिंग में आती है।
जैसे दिखने वाले एडवरटाइजमेंट, सोशल मीडिया पर किसी इनफ्लुएंसर द्वारा किसी सामान के बारे में चर्चा सब प्राईमिंग का हिस्सा है।
खुद को प्राईमिंग से बचाएं
प्राईमिंग से बचने के लिए उपाय बहुत सीधे और सरल है। नीचे दिए गए हुए कदमों से आप इन चीजों से बच सकते हैं।
1. हड़बड़ी न करे –
किसी भी फ़ैसले को लेते समय अगर आप हड़बड़ी करेंगे तो आप गलत निर्णय ले लेंगे। थोड़ा रुककर और आराम से निर्णय ले।
2. पर्याप्त जानकारी ले।
जिस चीज के बारे में आप निर्णय लेना चाहते हैं उस चीज से जुड़ी जानकारी ले। जितने सवाल आप पूछेंगे उतनी आपको जानकारी मिलेगी और उस जानकारी के आधार पर आप किसी नतीजे पर पहुंच पाएंगे।
3. अपनी भावनाओं को लेकर सचेत रहें।
हमारे जीवन में लिए गए बहुत सारे निर्णय इसलिए गलत हो जाते हैं क्योंकि हम भावनाओं में बह जाते हैं। फिर वह किसी महंगी चीज को स्टेटस के लिए लेने की बात हो या फिर किसी व्यक्ति को भावनाओं में बहकर उधार देने की बात हो। इसलिए अपनी भावनात्मक स्थिति को सचेत रूप से देखें।
2. Substitution
हर व्यक्ति को शॉर्टकट पसंद होते हैं। इस वजह से हम System 2 को छोड़ System 1 पर अपना फोकस जमा लेते हैं।
हम अपनी भावनाओं को सुन लेते हैं क्योंकि हम सोचना नहीं चाहते। खासकर तब जब हम बहुत खुश होते हैं, अच्छा सोचते हैं। हम Risks को नजरअंदाज कर देते हैं और उससे मिलने वाले लाभ को over estimate कर देते हैं।
इसका उल्टा भी होता है जब हम बहुत बुरा महसूस कर रहे होते हैं तो हम Risks को बहुत ज्यादा Over estimate करते हैं और लाभ को नजरअंदाज कर देते हैं।
आपने भी देखा होगा की कुछ लोग आपसे किसी तरह का लाभ लेने के पहले आपको बड़ा अच्छा महसूस करवाते हैं। इससे वो आपका भरोसा भी जीत जाते है और नज़दीकी संबंधों के चलते आप भावनाओं में बहकर निर्णय ले लेते हैं।
Substitution से बचने के तरीके।
1. उस जानकारी को देखे जो मौजूद हो। ध्यान से उस जानकारी को देखें और समझे।
2. थोड़ा रुके और एनालाइज करें। हड़बड़ी न मचाये अगर आपके पास डाटा है और आप उसे देख रहे हैं तो थोड़ा समय ले और उस डाटा को समझे।
3. अलग-अलग लोगों और माध्यम से राय प्राप्त करें। जितनी ज्यादा आपके पास ओपिनियन होगी उतनी ज्यादा आपके पास जानकारी होगी और उस आधार पर आप अच्छे निर्णय ले पाएंगे।
एक अच्छे निर्णय लेने के लिए आपको सबसे पहले अपने मन को रोकना होगा। मन वह होता है जो आपको तुरंत किसी भी निर्णय पर कूदने को मजबूर कर देता है इसलिए जल्दी में कोई भी निर्णय न ले।
3. Endowment Effect (एंडोमेंट इफेक्ट)
हम उन चीजों को ज्यादा तवज्जो देते हैं जिसके हम मालिक होते है। इस वजह उन चीजों के साथ हमारा एक भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है।
उदाहरण के लिए कई कंपनियां अपने प्रोडक्ट या सेवाओं को इस्तेमाल करने के लिए अपने ग्राहकों को फ्री ट्रायल देती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि ग्राहक को उस चीज की आदत लग जाए।
JIO ने अपने शुरुआती दिनों में ऐसा ही किया था। उन्होंने फ्री में इंटरनेट दिया। उस समय लोगो को इंटरनेट से जुड़ी चीज़ो की आदत नही थी मगर जियो के बाद लोगों की वह आदत बन चुकी थी।
ENDOWMENT Effect से बचने का तरीका।
1. जूम आउट करें और देखें क्या आपका लिया गया फैसला लंबे समय तक के लिए आपको लाभदायक बनाए रखेगा।
2. मार्केट वैल्यू पर फोकस करें। देखें कि किसी चीज़ के लिए जो मूल्य आप चुकाने वाले हैं वह उस मार्केट के हिसाब से ठीक है।
3. तीसरे व्यक्ति के नज़रिए से देखने का प्रयास करें। अपने बारे में फैसला लेते हैं हम भावनाओं से जुड़े होते हैं मगर आपने भी देखा होगा कि हम किसी और को बेहतर सलाह दे पाते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम एक तीसरा नजरिया अपनाते हैं।
हम सबके अंदर मंकी माइंड होता है जो उछल-कूद करता है। हमें भावनात्मक रूप से जुड़े हुए निर्णय लेने पर मजबूर करता है। तो अपने दिमाग की इन चीजों को समझें और आराम से निर्णय ले।
Daniel Kahneman द्वारा बताए गए तरीकों से आप देख पाएंगे कि जीवन में आपने जितने भी निर्णय लिए हैं कुछ अच्छे होंगे कुछ बुरे। जब आपने अच्छे निर्णय लिए हैं तब आपने फ़ैसले लेने के लिए पर्याप्त समय लिया है, अच्छे से चीजों को समझा है। वही हड़बड़ी में लिए गए फ़ैसलो के साथ कुछ गड़बड़ हुआ होगा।
Daniel Kahneman के इन नियमो के पालन के लिए आपको सचेत रहना पड़ेगा और यह चीज एक बार में नहीं होगी। इसका प्रयास आपको सचेत रूप से हमेशा करना पड़ेगा तब जाकर आप इसमें महारत हासिल कर पाएंगे और उसके बाद आपको निर्णय लेने के मामले में कोई प्रभावित नहीं कर पाएगा।
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