Malegaon Blast

31 जुलाई 2025 को NIA के स्पेशल कोर्ट ने Malegaon Blast में प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित एवम अन्य आरोपियों को सम्मान पूर्वक बरी कर दिया। क्या था यह मालेगांव मामला जिसे राजनीतिक षड़यंत्र के लिए भगवा आतंकवाद का नाम दिया गया?

किसने किया था यह आतंकी हमला?

क्यों आरएसएस थी कांग्रेस के निशाने पर?

कैसे 2008 के इस हिन्दू आतंकवाद की साजिश 2004 में गद्दारों के साथ पाकिस्तान कराची में रची गयी।

इस पूरे मामले की सच्चाई हर भारतीय को हिला कर रख देगी।

2004 कराची में लिखी गई थी साजिश की दास्तान।

2001 में 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने लगातार पाकिस्तान के ऊपर आतंकवादी गतिविधियों को लेकर दबाव डालना शुरू किया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के ऊपर बड़ा दबाव था और पूरा विश्व पाकिस्तान को एक आतंकवादी और रेडिकल स्टेट के रूप में देख रहा था।

इसी चीज को देखते हुए 2004 में पाकिस्तान आर्मी और ISI ने मिलकर एक प्लान बनाया। इस प्लान में दाऊद इब्राहिम समेत लश्कर-ए-तैयबा के हफ़ीज़ सईद को साथ लाया गया। 2004 में इस पूरे प्रोजेक्ट को नाम दिया गया कराची प्रोजेक्ट

इस प्रोजेक्ट के अंदर पाकिस्तान की ISI ने प्लान बनाया कि वह भारत में दाऊद इब्राहिम के गहरे नेटवर्क और लश्कर-ए-तैयबा की भारत में घुसने की तकनीक का इस्तेमाल कर भारत के अंदर रेडिकलाइजेशन को बढ़ावा देंगे।

योजना का सीधे तौर पर उद्देश्य भारत के अंदर यही के लोगो का उपयोग कर आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ाने का था।

कराची प्रोजेक्ट के अनुसार भारत में दाऊद का नेटवर्क मुस्लिम युवाओं को अपने जाल में फंसाएगा, उन्हें ब्रेनवाश करेगा और एक हद तक ब्रेन वाश करने के बाद उन्हें लश्कर को सौंप दिया जाएगा। जो उन्हें नेपाल और दुबई के जरिए पाकिस्तान के कराची में पहुँचायेगा। वहां उन्हें ट्रेनिंग दी जाएगी कि कैसे भारत में मौजूद लोकल चीजों का इस्तेमाल कर वह बम बनकर आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दे सकते हैं।

साल 2005 से इन सभी ने कराची प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू कर दिया। इसी कड़ी में इंडियन मुजाहिदीन को बनाया गया। इंडियन मुजाहिदीन को लश्कर-ए-तैयबा के इशारों पर काम करने और भारत मे युवाओ को आतंकवादी बनाने के लिए बनाया गया था।

इन भारत विरोधी संगठनों का मकसद भारत को बदनाम कर एक नैरेटिव सेट करना था। पाकिस्तान चाहता था कि वह भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर बदनाम कर सके कि भारत में भी आतंकवाद है और पाकिस्तान अकेला ऐसी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार नहीं है।

SIMI को बदल कर दिया गया PFI

90 के दशक में बना SIMI जिसे मुस्लिमों के हक़ की बात और उनके उद्धार करने वाला संगठन बताया जाता था पर असल में भारत में मुसलमान को भड़काने का काम कर रहा था। जब 2001 में अमेरिका के अंदर 9/11 हमला हुआ तो सिमी के लोगों ने भारत के कई शहरों में रैली निकाल कर ओसामा बीन लादेन की तारीफ की, उसकी फोटो पर फूल बरसाए।

इस घटना को देखने के बाद 2001 में भारत सरकार ने सिमी को भारत के अंदर बैन कर दिया। भारत में सेमी पर बैन लगने के बाद उस संगठन पर तो बैन लग गया था मगर इसके लोग अभी भी खुले घूम रहे थे और अंदर से अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे। कराची प्रोजेक्ट के अंदर इन्हीं लोगों का इस्तेमाल किया गया।

2006 आते-आते दाऊद के नेटवर्क और इंडियन मुजाहिदीन के प्रयासों की मदद से SIMI के लोगो को फिर एक साथ लाया गया और SIMI को एक नया रूप देकर उसे PFI बना दिया गया। इस PFI के अंदर दाऊद और सिमी के पुराने लोग साथ मिलकर काम कर।रहे थे।

उनके काम करने का तरीका ऐसा था कि इंडियन मुजाहिदीन के लिए PFI एक फीडर ऑर्गेनाइजेशन था। इंडियन मुजाहिदीन छुपकर तो PFI खुले तरीके से राजनीतिक और अन्य गतिविधियों को कर रहा था। यह बोलना गलत नही होगा कि PFI ऊपरी तौर पर सारी गतिविधियों को राजनीतिक रूप से चलता था और अंदर से इंडियन मुजाहिदीन सारे कांड करता था।

PFI मुस्लिम युवाओं को ब्रेनवाश कर उन्हें बहुत ज्यादा रेडिकल बनाता था। जिसके बाद इन रेडिकल युवाओं को इंडियन मुजाहिदीन को सौंप दिया जाता था। फिर इंडियन मुजाहिदीन उनकी ट्रेनिंग करवाती थी और यह युवा फिर वापस ट्रेनिंग से लौट कर भारत में अटैक को अंजाम देते थे।

इस प्रोजेक्ट के शुरू होने के बाद 2006 तक इसके नतीजे आने शुरू हो गए। 2006 में मालेगांव समेत कई जगह ब्लास्ट हुआ। 2007 में भी ऐसे बन धमाके कई इलाकों में हुए।

लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित की जिम्मेदारी।

आर्मी इंटेलिजेंस ने 2006 में हुए ब्लास्ट के बाद यह देखा कि कुछ संगठन अंदरुनी रूप से काम कर रहे है और यह सारी घटनाओं का अंजाम दे रहे है। यह संगठन इंडियन मुजहीदुद्दीन था तो इसी की गतिविधियों की जानकारी के लिए मिलिट्री इंटेलीजेंस ने अपने एक अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित को नियुक्त किया। श्रीकांत पुरोहित इंडियन मुजाहिद्दीन के अंदर घुसे और कई महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाई जैसे इन संगठनों को पैसा कहाँ से आता है, किस तरीके से आता है।

मगर 2008 में Malegaon blast की घटना हो जाती है और उसके बाद राजनीतिक फायदे के लिए एक बड़ी कहानी गड़ी गयी।

क्या था Malegaon Blast मामला।

29 सिंतबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में भीकू चौक मज्जिद के पास कम इंटेंसिटी का बम धमाका हुआ जिसमे 6 लोग मारे गए और 101 लोग घायल हो गए।
यह इलाका पहले से ही अपने धार्मिक दंगो के लिए चर्चा में था और धमाके के बाद यह साम्प्रदायिक तनाव और भी गहरा गया। धमाके के समय रमजान का महीना चल रहा था और इस इलाके में मुस्लिमों की आवादी ज़्यादा थी।

इसी घटना के बाद ATS को इस मामले की जांच की जिम्मेदारी दी गयी। इस ब्लास्ट में एटीएस को एक मोटरसाइकिल मिली जो ब्लास्ट में नष्ट हो गई थी मगर उसका चेचिस बचा हुआ था। यह गाड़ी LML फ्रीडम थी। आगे चलकर चेचिस का यह नंबर ही इस पूरे षड्यंत्र का आधार बनता है।

एटीएस की कहानी अनुसार यह गाड़ी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के नाम रजिस्टर थी। इस आधार पर प्रज्ञा सिंह ठाकुर, RSS से जुड़े कई लोग और लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित समेत अभिनव भारत के लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।

एटीएस अपनी थ्योरी में बताती है कि इन लोगों ने अभिनव भारत नाम का एक संगठन तैयार किया और इस संगठन ने ही पूरे ब्लास्ट प्लान किये।

एटीएस की थ्योरी, सिर्फ एक कहानी थी।

इस पूरे मामले में एटीएस ने जिन सबूतों को इकट्ठा किया उसमें एक बाइक थी। उसे मोटरसाइकिल के अलावा इस केस में मुख्य सबूत के नाम पर कई गवाह थे मगर कई गवाह कोर्ट में बदल गए, कई गवाह ने खुले तौर पर कहा कि एटीएस ने जबरन ही उनसे बयान देने को कहा था।

इससे साफ पता चला कि महाराष्ट्र की एटीएस ने कहानी गड़ी और फिर अदालत में उसे सच बताने का प्रयास किया।

मगर यह चीज गवाहों तक सीमित नहीं थी। एटीएस ने जिस गाड़ी के नाम पर प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत उन लोगों को गिरफ्तार किया गया था, वह असल में प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम पर पहले तो रजिस्टर्ड हुई थी मगर यह बाइक सुनील जोशी को बेच दी गई थी मगर उसकी हत्या के बाद इस बाइक को रामजी कलसांगरा चला रहा था। तकरीबन हादसे के 2 साल पहले से वह गाड़ी रामजी कलसांगरा के पास ही थी।

क्रमांक और श्रृंखला संख्या का रहस्य।

RTO की गवाही में यह बात सामने आई कि इंजन पर लिखी पहली संख्या श्रृंखला संख्या होती है और दूसरा भाग क्रमांक संख्या होती है। उदहारण के लिए किसी गाड़ी की श्रृंखला संख्या E66OG है और क्रमांक संख्या 271668 है तो अगर किसी दूसरे इंजन की श्रृंखला संख्या E560G हो जाये तब भी उसकी क्रमांक संख्या 271668 हो सकती है।

इससे यह बात साफ हुई कि क्रमांक संख्या एक होने के बाबजूद श्रृंखला संख्या अलग हो सकती है। Malegoan blast में प्राप्त मोटर साईकल पर मिले अंक पूर्णतः पुनर्प्राप्त नहीं हुए थे। यह मात्र अनुमान था।

इसी कारण जज लाहोटी का कहना था कि यह दर्शाता है कि केवल अनुमान, कल्पना और पूर्वधारणाओं के आधार पर निकटतम संख्या को देखकर यह निष्कर्ष निकाला गया कि वही वाहन है, जबकि अन्य संभावनाओं की कोई खोज नहीं की गई।

कोई खुद की गाड़ी से क्यों कराएगा हमला।

एक बार को यह मान भी लिया जाए कि यह साजिश प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अन्य लोगो की थी जिन्हें आरोपी बनाया गया पर इतने बड़े हमले के साजिशकर्ता कभी भी ऐसे हमले में अपने नाम की गाड़ी का उपयोग क्यों करेंगे।

देश के अंदर हर रोज अपराध हो रहे है। चोरी, डकैती, अपहरण के लिए भी मुजरिम चोरी की गाड़ी का उपयोग करते है, न कि खुदकी गाड़ी का। तो इतने बड़े हमले को करने वाले लोगो द्वारा खुदकी गाड़ी के उपयोग वाली बात बेबुनियाद लगती है।

वैज्ञानिक और फोरेंसिक रूप से यह बात साबित ही नहीं हो सकी कि जिस बाइक को प्रज्ञा सिंह ठाकुर का बताया जा रहा है उसी पर बम रखा गया था।

राजनीतिक फायदे के लिए किया गया इस्तेमाल।

2009 में भारत में चुनाव आने वाले थे और उसके पहले एक राजनीतिक पार्टी को बड़ी तकलीफ थी कि लगातार 2006 से जो हमले हो रहे हैं उनमें मुसलमानों का नाम क्यों आ रहा है। इससे उनके वोट बैंक पर उन्हें खतरा समझ में आ रहा था क्योंकि हिंदूवादी संगठन लगातार सरकार की निंदा कर रहे थे।

जब 2008 में मालेगांव में ब्लास्ट हुआ और एक बाइक प्राप्त हुई जिसके अधूरे चेचिस नंबर के आधार पर उसकी मालिक प्रज्ञा ठाकुर को बता दिया गया तब यहां से एक नया गेम शुरू हुआ।

हालांकि इसी के साथ एटीएस को यह जानकारी भी लगी है की मिलिट्री इंटेलिजेंस का एक अधिकारी इंडियन मुजाहिदीन के साथ इंवॉल्व है। तो राजनीतिक लाभ के लिए एक कहानी रची गई जिसमे इस अधिकारी और प्रज्ञा ठाकुर को साथ लेकर इन्हें पूरे ब्लास्ट का जिम्मेदार ठहरा दिया गया।

यहीं से एक शब्द का जन्म हुआ जिसे बोला गया भगवा आतंकवाद।

उस समय कई नेताओं ने इसको लेकर बड़े बयान दिए। भगवा आतंकवाद की खबरें मीडिया में जोरों से चली गयी। कई नेता किताबों का विमोचन करते हुए भी नजर आए और दिग्विजय सिंह इस रेस में सबसे आगे थे।

कथित कहानी के जरिए कई हिंदूवादी नेताओं को किया गिरफ्तार।

ऊपरी दबाव और इशारे के बाद एटीएस ने कई हिंदू नेताओ और आरएसएस से जुड़े लोगों को गिरफ्तार करने शुरू कर दिया। इन सभी निर्दोष लोगों को सीधे Malegaon blast से जोड़ दिया गया।

अपना दर्द बताते हुए साध्वी प्रज्ञा कहती है कि उन्हें 13 दिन तक लगातार यातनाएं दी गई और यह सब मुंबई पुलिस कमिश्नर हेमंत करकरे के निर्देश पर हुआ। उन्होंने आगे कहा कि यह उनका श्राप था जिसके बाद हेमंत करकरे को मुम्बई हमले में आतंकवादियों की गोली लगी और वह मारे गए।

मगर उस समय के ATS चीफ मेहबूब मुजावर ने बाद में खुलासा किया गया कि उनके ऊपर हेमंत करकरे और अन्य लोगों का दबाव था कि इस मामले में मोहन भागवत को गिरफ्तार किया जाए। जब उन्होंने ऐसा नहीं किया तो उनके पूरे करियर को झूठे इल्जाम लगाकर बर्बाद कर दिया गया।

पूर्व की सरकार पर कई सवाल खड़े करती है यह पूरी घटना।

रामजी कलसांगरा को कभी भी अपनी बात रखने का अवसर ही नहीं मिला। ऐसा बता दिया गया कि वह फरार हो चुके हैं जबकि उनके परिवार का कहना है कि पुलिस आई और उनके पिता को उठाकर ले गई। उसके बाद से राम जी का आज तक कोई पता नहीं चला। मगर महबूब मुजावर पूर्व एटीएस के चीफ थे उन्होंने एक हलफनामा अदालत में डालते हुए यह बात कही की रामजी कलसांगरा की पुलिस हिरासत में मौत हो चुकी है और उनकी लाश को लावारिस लाश बताकर पहले ही खत्म कर दिया गया था।

क्या इस बात की संभावनाएं नहीं थी कि जो गाड़ी रामजी कलसांगरा के पास थी, संभवत वह गाड़ी किसी और व्यक्ति ने उनसे खरीद ली हो और उसके बाद यह सारी घटनाओं का अंजाम दिया गया हो।

हो सकता है कि रामजी कलसांगरा कई ऐसी बातें जान गए हो जिससे इस पूरी कहानी का नाश हो जाता इस वजह से उनकी हत्या कर उन्हें गायब कर दिया गया हो और रिकॉर्ड में यह बता दिया गया कि वह फरार है।

अगर वो जिंदा है तो क्या देश की पुलिस, एटीएस और NIA इतनी कमजोर थी कि वह आज तक एक फरार व्यक्ति को नहीं ढूंढ पाई।

कोर्ट ने इस मामले पर साफ कहा है कि सिर्फ कल्पनाओ के आधार पर किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस मामले में पर्याप्त सबूत नहीं है और इस वजह से सारे हिंदूवादी लोगों को जिन्हें उस समय के सिस्टम ने आरोपी बनाकर फसाया था उन्हें कोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया।

मगर 17 साल का एक लंबा इंतजार इन सभी लोग करना पड़ा और सालों तक जेल की सलाखों के पीछे की यातनाएं सहनी पड़ी। वो भी उस जुर्म के लिए जो इन्होंने कभी किया ही नही था। इनकी गलती सिर्फ धर्म से जुड़े होना था।

Other Blogs:

बच्चा किसी और का, पालेगा कोई और : Indian Judiciary

Annabelle doll के साथ घूमा शख्श, हो गयी रहस्यमयी मौत।

By Mayank Dubey

मयंक एक बहुआयामी लेखक, विचारशील कंटेंट क्रिएटर और युवा विचारक हैं एवं "मन की कलम" नामक हिंदी कविता संग्रह के प्रकाशित लेखक हैं। वे धर्म, भारतीय संस्कृति, भू-राजनीति और अध्यात्म जैसे विषयों में भी लिखते है। अपने यूट्यूब चैनल और डिजिटल माध्यमों के ज़रिए वे समय-समय पर समाज, सनातन संस्कृति और आत्मविकास से जुड़े विचार प्रस्तुत करते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *