भारत में आध्यात्मिक खोजियों द्वारा एक प्रश्न बहुत पूछा जाता है कि सत्यता क्या है? सत्य की खोज में कुछ लोग पहाड़ों में चले गए, कुछ ने संन्यास ग्रहण कर लिया और कुछ ने न जाने कितने अलग-अलग तरह के प्रयास कर लिए इस परम् सत्य को जानने के लिए।
कुछ लोग इसे ईश्वर मानते हैं। तो कुछ लोग का कहना होता है कि जो दिख रहा है वही सत्य है। आखिर क्या है यह सत्य?
क्या जो हम जो देखते हैं, जिसे महसूस करते हैं, वही सत्य है या यह इस सबसे परे है।
सत्य पर आधारित एक चर्चित कहानी।
इस बात को एक कहानी के जरिए समझते हैं।
एक बार एक समृद्ध राज्य में भिखारी पहुँचा। उसने 3 दिन से कुछ नहीं खाया था और लगातार भीख मांगने के बावजूद भी कोई उसे भीख देने को तैयार नहीं था। वह नदी किनारे जाकर बैठ गया।
तभी उसकी नजर घाट की ओर गयी जहां पर कुछ लोगो की भीड़ लगी हुई थी। वह थोड़ा करीब जाकर देखता है तो सोने चांदी के आभूषणों से लदी एक महिला घाट से गुजर रही थी। उसके आसपास दासियां एवं सेवक थे और सिपाही उसकी सुरक्षा के लिए लगे हुए थे।
भिखारी सोचता है ‘यह महिला समृद्ध नजर आ रही है। भले ही मुझे पूरे राज्य में किसी ने भीख नहीं दिया पर यह महिला मुझे दान के रूप में कुछ न कुछ जरूर देगी।’
वो उठ कर जाता है और उस महिला के पास जाकर उसके चरणों पर गिरते हुए कहता है की ‘देवी मैंने 3 दिन से कुछ नहीं खाया है। इस राज्य के अंदर कोई मुझे भिक्षा भी नहीं दे रहा। कृपया मुझ पर दया कीजिए और मुझे भोजन के लिए कुछ दे दीजिए।’
उसकी बात सुन महिला क्रोधित हो जाती है और उसे रहती है कि ‘तुम्हें शर्म नहीं आती की भीख मांग के इस राज्य की गरिमा को नष्ट कर रहे हो।’
यह सुनकर भिखारी कहता है कि ‘अगर आपको अपने राज्य की गरिमा की इतनी चिंता है तो मुझे कुछ खाने को दे दीजिए।’
इस पर महिला कहती है की ‘जाओ राज्य के भिक्षु ग्रह पर चले जाओ, वहां तुम्हें भोजन मिल जाएगा।’
भिखारी इस बात को सुनकर बड़ा खुश होता है और वह भिक्षु ग्रह का पता पूछ कर उस ओर भागता है। वहां लंबी लाइन लगी होती है। भिखारी भी इस लाइन में लग जाता है और जैसे ही भिखारी का नंबर आता है तो वह भोजन के लिए अपने दोनों हाथों को जोड़कर आगे बढ़ता है ताकि उसमें भोजन ले सके इस पर वहां खड़ा सिपाही उसे चिल्ला देता है
‘बिना कटोरा के भोजन नहीं मिलेगा। जाओ पहले कटोरा लेकर आओ।’
भिखारी कहता है कि मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं कहां से कटोरा लाऊंगा।
सैनिक कहता है ‘यह मुझे नहीं पता, जाओ पहले कटोरा लेकर आओ तभी तुम्हे भोजन मिलेगा। सैनिक उस भिखारी को वहां से भगा देता हैं।’
भिखारी की हालत और भी खराब हो जाती है। उसे लगा था कि तीन दिन से जिस भूख को लेकर वह चल रहा है, वो समाप्त होने वाली है। मगर अब उसे कटोरे की व्यवस्था करनी पड़ेगी। तब जाकर उसे भोजन मिलेगा।
वह कुमार के पास जाता है और उससे निवेदन करता है कि उसे कटोरा दे। कुमार उसे कटोरा देता है उस कटोरा का मूल्य बताता है।
भिखारी कहता है कि ‘भैया मेरे पास कुछ भी नहीं है। 3 दिन से मैं भूखा हूं भिक्षु ग्रह में भी बिना कटोरा के भोजन नहीं मिल रहा था इसलिए मुझे कटोरे की जरूरत है। आप मुझे यह दे दीजिए। पर मैं आपको पैसे नहीं दे पाऊंगा क्योंकि मेरे पास कुछ भी नहीं है।’
कुमार उसकी बात सुनकर क्रोधित हो जाता है और कटोरा छीन कर उसे वहां से भगा देता है।
भिखारी सोचता है कि मैंने ऐसा क्या किया है जो ईश्वर मेरे साथ ऐसा कर रहा है। उसे लगता है भूख के कारण उसकी मृत्यु हो जाएगी। वह पेड़ के नीचे जाकर बैठता ही है कि उसकी नज़र पड़े के पास कचरे पर जाती है। वहाँ एक टूटा हुआ कटोरा पड़ा होता है। वह उस कटोरे को उठता है और उठाकर सीधा भिक्षु ग्रह भागता है। इस बार उसे वहां से भोजन मिल जाता है।
वह कटोरे में भोजन लेकर बाहर निकलता है और सोचता है कि ईश्वर कभी किसी को भूखा नहीं रहने देते। खुशी से वो भोजन लेकर बैठने के लिए जगह देखता है मगर तभी उसे लोगों की आवाज आती है। लोग एक तरफ भागते हुए बोलते है ‘अरे भागो!!! बेल पागल हो गए हैं!’
यह भिखारी कुछ सोच पता, बैल आकर उसे ठोकर मार देते हैं। उसका सारा भोजन गिर जाता है और वह दूसरी तरफ गिरता है।
तभी अचानक किसी की नींद खुलती है। उस व्यक्ति को एहसास होता है कि जो चीज अभी हो रही थी वह सत्य नहीं, एक स्वप्न था। यह स्वप्न बदेखने वाला व्यक्ति कोई और नहीं, राजा जनक थे और सपने का भिखारी भी कोई और नहीं, राजा जानक ही थे।
राजा जनक चिंतित हो जाते हैं कि क्या वह सपने का भिखारी सत्य है या यह अवस्था जिसमें वह एक राजा है?
इस चिंता को लेकर राजा जनक आचार्य अष्टावक्र के पास पहुंचते हैं। अष्टावक्र उनकी बात को ध्यान से सुनते हैं और उसके बाद कहते हैं बताइए राजन आपका प्रश्न क्या है।
राजा जनक कहते हैं की आचार्य सत्य क्या है?
क्या सपना का वो भिक्षु सत्यता है या मेरी यह अवस्था?
अष्टावक्र उन्हें बताते हैं कि यह दोनों ही झूठ है। क्योंकि अभी तुम जागे ही नही हो, जिस दिन तुम्हें सर्वोच्च सत्यता का अनुभव होगा, उस दिन यह दोनों ही अवस्था तुम्हें सत्य नही लगेगी।
तीन तरह की सत्यता।
प्रातिभासिक सत्यता।
सपने का भिक्षु एक प्रातिभासिक सत्यता (Apparent reality) है इसमे जबतक व्यक्ति सपना देखता है उसे वह सत्य लगता है। जब तक नींद नहीं खोलती, व्यक्ति के लिए प्रतिभासिक सत्यता ही उसकी परम सत्यता होती है।
व्यावहारिक सत्यता
यह जागृत जगत जिसमें हम सब रह रहे हैं जिसका अनुभव अभी हम सब कर रहे हैं। यह व्यावहारिक सत्यता है। (Transactional or Practical Reality)
व्यवहारिक सत्यता में काल के अनुसार परिवर्तन होता रहता है। इसका मतलब है भूत वर्तमान और भविष्य में चीज बदलती रहती हैं।
सर्वोच्च सत्यता
मगर जो सर्वोच्च सत्यता है (Absolute Reality या परमात्मिक सत्यता) वहां पर कोई परिवर्तन नहीं होता। जो व्यक्ति सर्वोच्च सत्यता अनुभव कर लेता है उसके लिए व्यवहारिक सत्यता भी खत्म हो जाती है।
इसलिए हमारे ऋषि, मुनि और ग्रंथ यह कहते हैं कि व्यवहारिक सत्यता में फंसकर उलझ जाना ही अज्ञान है और इससे आगे निकल कर सर्वोच्च सत्यता का अनुभव करना ही ज्ञान है।
इसलिए ईश्वर ने हमें बुद्धि, विवेक प्रदान किया है कि हम इन चीजों को समझ कर अच्छे निर्णय ले सके और अपने मार्ग पर चल सके ताकि सत्यता का हम अनुभव कर पाए।
व्यवहारिक सत्यता में अपने बुद्धि, विवेक, संयम, चेतना और धर्म के पालन से न सिर्फ आप सर्वोच्च सत्यता को अनुभव कर पाएंगे बल्कि इस व्यावहारिक सत्यता में भी ऊपर उठ जाएंगे।
तो फिर असत्य क्या है?
सत्य वह है जो काल की तीनों अवस्था में कभी अस्तित्व में नहीं होता। उदाहरण के लिए किसी सपने में आप एक एक बड़ी गाड़ी को चलाते हैं। गाड़ी को चलाने कि उस भावना का अनुभव करते हैं।
जब आपकी नींद खुलती है तब यह घटना आपके अनुभव में है, मतलब यह भूतकाल से जुड़ी होना चहिए, मगर क्या ही सच में भूतकाल में हुई है?
जी नहीं। इसलिए यह पूर्ण रूप से असत्य है।
आदि शंकराचार्य ने आत्मबोध में कहा है यह संसार जो राग, द्वेष और परेशानियों से भरा हुआ, यह एक सपने जैसा है। जब तक व्यक्ति इसे सच मानता रहता है, तब तक यह उसे दिखाई देता है। एक बार जब परमात्मिक सत्यता का व्यक्ति अनुभव कर लेता है तो यह सारी चीज उसके लिए खत्म हो जाती हैं।
इसलिए सत्य को देखें और प्रयास करें कि परम सत्यता का अनुभव आपको हो जाए।
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