Zohran Mamdani American politician accused of Hinduphobia

अमेरिका की राजनीति में हाल ही में Zohran Mamdani की जीत को “वामपंथी-लिबरल मूल्यों की ऐतिहासिक सफलता” के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। मीडिया में उसे एक प्रगतिशील मुस्लिम नेता कहा जा रहा है, जो सामाजिक न्याय, टैक्स सुधार और गरीब तबकों की आवाज़ बनने का दावा करता हैं। लेकिन जब हम Mamdani परिवार की विचारधारा और उनके बौद्धिक पृष्ठभूमि की गहराई में उतरते हैं, तो एक अलग तस्वीर सामने आती है। एक Hinduphobia विचारधारा की तस्वीर जो लंबे समय से भारत और हिंदू सभ्यता के खिलाफ Intellectual Narrative तैयार कर रही है।

Mahmood Mamdani: विचारधारा की जड़ें

Zohran Mamdani के पिता, Mahmood Mamdani, अफ्रीकी मूल के एक प्रसिद्ध लेखक और विचारक हैं। उन्होंने कई  किताबें लिखीं जैसे “When Victims Become Killers”, “Good Muslim, Bad Muslim” और “Citizen and Subject” उनमें प्रमुख हैं।

लेकिन इन पुस्तकों में जो वैचारिक फ्रेमिंग दिखाई देती है, वह कई गंभीर प्रश्न उठाती है।

उदाहरण के लिए, किताब “When Victims Become Killers” में वे अफ्रीका के रवांडा नरसंहार (Hutu vs Tutsi) की तुलना भारत के 1947 विभाजन से करता हैं। Mamdani इस तुलना में यह संकेत देता हैं कि जैसे हुतू ने तुत्सी पर हिंसा की, वैसे ही हिंदू बहुसंख्यक ने भारत की स्वतंत्रता के समय मुसलमानों पर अत्याचार किया था। यह फ्रेमिंग एक “Hindu Majoritarianism = Genocidal Mentality” का नैरेटिव तैयार करती है।

परंतु यह दृष्टिकोण 1947 के उन लाखों विस्थापित हिंदुओं और सिखों के दर्द को पूरी तरह अनदेखा कर देता है, जिन्होंने अपनी जान गंवाई या घर छोड़ा। इस एकतरफ़ा दृष्टिकोण से ही पश्चिमी मीडिया और अकादमिक सर्कल में Hinduphobia की नींव पड़ी।

इन हिन्दू विरोधी चर्चाओं में कभी भी उन घटनाओं की बात नही होती जिसमें हिंदुओ के ऊपर भयंकर यातना हुई जैसे जम्मू कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के साथ हुई भीषण निर्ममता शामिल है। 

Good Muslim, Bad Muslim – एक विचारधारात्मक छल

Mahmood Mamdani की दूसरी प्रसिद्ध पुस्तक “Good Muslim, Bad Muslim” में वे मोहम्मद अली जिन्ना को एक “Liberal Democratic Leader” की तरह पेश करते हैं। Mamdani का यह जिन्ना प्रेम था जहाँ वे मोहम्मद अली जिन्ना को Secular कहता है। पर अगर जिन्ना इतना ही democratic था तो उसे पाकिस्तान में संविधान लागू करना था जो जिन्ना के मरने के बाद 1956 में लागू हुआ। 

Zohran Mamdani की विचारधारा और हिंदूफोबिया पर सवाल

उसके अनुसार पाकिस्तान आंदोलन धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व का आंदोलन था। यहां उसने जिन्ना के “Direct Action Day” और Two-Nation Theory जैसी घटनाओं को जानबूझकर नज़रअंदाज़ कर दिया।

Mamdani ने ख़ुदको एक पढ़ा लिखा होशियार व्यक्ति के रूप में दिखाया है। वो लिखता है कि जिन्ना को पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओ की चिंता थी पर वो इस बात पर रोशनी नही डालता कि यह जिन्ना के ही विचार थे कि हिन्दू और मुस्लिम अलग-अलग है। हिंदू सांस्कृतिक, वैचारिक और सभ्यताओं में मुस्लिमों से पूरे भिन्न है और यह आपस मे एक देश मे नही रह सकते। 

Mamdani ने या तो इतिहास नही पढ़ा या उन तथ्यों को अपने Secular जिन्ना narrative के लिए नज़रंदाज़ कर दिया जहाँ 1946 में जिन्ना ने कोलकाता में लाखों हिंदुओ के ऊपर नरसंहार किया था। कोई भी समझदार व्यक्ति जिन्ना जैसे व्यक्ति को सेक्युलर कैसे बोल सकता है जिसने 1949 में पाकिस्तान में कहा था “Sovereignty Belongs to Allah” 

यह वही बौद्धिक सोच है जो भारत में वामपंथी और सेक्युलर सर्कल में यह भ्रम फैलाती है कि “धार्मिक राष्ट्रवाद केवल हिंदुओं का दोष है, बाकी सभी आंदोलन प्रगतिशील हैं।”

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Zohran Mamdani: राजनीति या वैचारिक विस्तार?

Zohran Mamdani की वैचारिक जड़ें इन्हीं किताबों और सोच से पोषित हैं।

वे अमेरिका में Democratic Socialism के प्रतिनिधि हैं, और Pro-Palestinian तथा anti-Modi वक्तव्यों के लिए जाने जाते हैं। Mamdani के अनुसार एक आतंकवादी जो इस्लाम के नाम पर आतंक फैलाता है वो नतीजा है पश्चिमी देशों के दवाब का जिसने उसे आतंकवादी बना दिया। इस जैसे लोग जो ख़ुदको liberal बताते है मगर वही दूसरी ओर यह एक आतंकवादी को शहीद का दर्जा दे देते है। 

शहीद वो होता है जो आमने-सामने की लड़ाई में नियमानुसार लड़ने पर अपनी जान गवाता हो न कि कोई ऐसा व्यक्ति जो इस्लाम के नाम पर मासूम लोगो को मारने के लिए खुद बम पहनकर मरने चला जाये।

इसने कई बार भारत की नीतियों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की है, परन्तु कभी भी इस्लामी आतंकवाद, पाकिस्तान के अल्पसंख्यक उत्पीड़न, या हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार पर एक शब्द नहीं कहा।

उनके सार्वजनिक वक्तव्यों में selective outrage साफ दिखता है। भारत की नीतियों पर सवाल, लेकिन कट्टर इस्लामी संगठनों के प्रति चुप्पी। यही वह प्रवृत्ति है जो पश्चिमी राजनीतिक मंचों पर “Hindu = Oppressor” का भ्रम फैलाती है।

विचारधारा का ग्लोबल प्रभाव

Mahmood और Zohran Mamdani का बौद्धिक प्रभाव अब पश्चिमी विश्वविद्यालयों और थिंक टैंक्स में फैल चुका है।

इस विचारधारा का मूल उद्देश्य यह प्रतीत होता है कि हिंदू धर्म, भारतीय राष्ट्रवाद, और प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों को “majoritarian” कहकर moral legitimacy से वंचित किया जाए। दरअसल, यह वही ‘Academic Hinduphobia’ है जिसकी ओर कई विद्वान पहले ही संकेत कर चुके हैं कि पश्चिमी बौद्धिक वर्ग में भारत को हमेशा “colonial gaze” से देखा जाता है।

आलोचना के मायने।

Zohran Mamdani की जीत को महज़ एक “political success” मान लेना भूल होगी। यह एक ऐसी विचारधारा की सफलता है जो Identity politics और victimhood narrative के ज़रिए हिंदू सभ्यता की छवि को वैश्विक स्तर पर कमजोर करने की कोशिश करती है।

भारत के लिए ज़रूरी है कि वह इस तरह के intellectual soft attacks को पहचाने और अपनी Civilizational narrative को मजबूती से सामने रखे।

By Mayank Dubey

मयंक एक बहुआयामी लेखक, विचारशील कंटेंट क्रिएटर और युवा विचारक हैं एवं "मन की कलम" नामक हिंदी कविता संग्रह के प्रकाशित लेखक हैं। वे धर्म, भारतीय संस्कृति, भू-राजनीति और अध्यात्म जैसे विषयों में भी लिखते है। अपने यूट्यूब चैनल और डिजिटल माध्यमों के ज़रिए वे समय-समय पर समाज, सनातन संस्कृति और आत्मविकास से जुड़े विचार प्रस्तुत करते हैं।

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