Pakistan India nuclear rivalry concept graphic – Islamic bomb claim by former CIA officer Barlow

न्यू दिली / वॉशिंगटन: पूर्व अमेरिकी खुफिया एजेंसी Central Intelligence Agency (CIA) के अधिकारी Richard Barlow ने एक इंटरव्यू में दावा किया है कि पाकिस्तान ने जब परमाणु हथियार विकसित करने की दिशा में कदम उठाया था, तो इसकी मूल प्रेरणा भारत का सामना करना था। लेकिन बाद में इस प्रक्रिया का स्वरूप बदल दिया गया और Pakistan Nuclear Program एक “इस्लामिक बम” यानी मुस्लिम राष्ट्रों को तकनीक हस्तांतरित करने वाला हथियार बन गया, जो अन्य मुस्लिम देशों के लिए भी था।

Pakistan Nuclear Program की दिशा में परिवर्तन: भारत-विरोध से इस्लामिक रणनीति तक का सफर।

Barlow के अनुसार, 1974 में भारत द्वारा पहला परमाणु परिक्षण (Smiling Buddha) करने के बाद, पाकिस्तान ने तुरंत चुनौती लेने का निर्णय लिया। इसके बाद, पाकिस्तान के प्रमुख वैज्ञानिक Abdul Qadeer Khan ने इस दिशा में कदम आगे बढ़ाए और यह स्पष्ट हुआ कि यह सिर्फ “पाक बम” नहीं बल्कि “मुस्लिम बम” बनने की ओर अग्रसर था। “Abdul Qadeer Khan और जनरलों की दृष्टि में यह सिर्फ पाकिस्तान नहीं बल्कि इस्लामिक एकता का हथियार था,” Barlow ने कहा।

उन्होंने एक कथित उद्धरण भी साझा किया जिसे उन्होंने सुना था:

“We’ve got the Christian bomb, the Jewish bomb, and the Hindu bomb; we need a Muslim bomb.”

यह बयान इस बात को दर्शाता है कि पाकिस्तान की परमाणु नीति में अब सिर्फ क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता नहीं, बल्कि एक विचार-आधारित रणनीति शामिल हो गई थी।

-अमेरिका की भूमिका — अनदेखी और भयंकर षड्यंत्र।

Barlow ने यह भी आरोप लगाया है कि अमेरिका ने 1980 के दशक में पाकिस्तान के इस कार्यक्रम पर जानबूझकर निगरानी कम कर दी थी। उन्होंने आगे यह भी कहा कि “यह खुफिया विफलता नहीं बल्कि नीति-चयन (policy choice) की समस्या थी”।

उनके मुताबिक, उस समय अमेरिका अफगान मुजाहिदीन तथा सोवियत संघ के खिलाफ संघर्ष में पाकिस्तान को अपने फायदे अनुसार एक ठोस साझेदार मान रहा था, इसीलिए उसने पाकिस्तान-न्यूक्लियर नेटवर्क पर कठोर कार्रवाई नहीं की।

भारत-इज़राइल प्रस्ताव: एक खोया हुआ अवसर।

इस बीच, Barlow ने दावा किया कि 1980 के दशक की शुरुआत में भारत और इज़राइल ने Pakistan Nuclear Program पर पहले से हमला करने की योजना बनाई थी — विशेष रूप से भारत के खिलाफ तकनीकी बढ़त को रोकने के लिए। लेकिन उस दौरान भारत की इंदिरा सरकार ने इसे मंजूरी नहीं दी। Barlow इसे “शर्मनाक” करार देते हैं।

“It’s a shame that Indira didn’t approve it; it would’ve solved a lot of problems.”

एक रिपोर्ट के मुताबिक यह प्रस्ताव पाकिस्तानी खुफिया नेटवर्क को पहले ही चेतावनी दे चुका था।

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विश्लेषण: राष्ट्रीय दृष्टिकोण से क्या मायने रखता है?

सुरक्षा-प्रति संवेदनशीलता

राष्ट्र-प्रेमी नजरिए से देखें तो यह कथन एक चेतावनी जैसा है कि पाकिस्तान की रणनीति सिर्फ भारत तक सीमित नहीं थी, बल्कि अन्य मुस्लिम पड़ोसी देशों तक फैली हुई थी। यह भारत-के लिए तत्काल-चिंता का विषय हो सकता है। इसी कड़ी में पाकिस्तान और सऊदी देशो बीच रक्षा समझौते भी हुए है जिसमे एक देश के ऊपर हमला साझेदार देशो के ऊपर हमला माना जायेगा।

रणनीतिक स्वायत्तता

भारत ने आज “नो फर्स्ट यूज़ (No First Use)” नीति अपनाई है, जबकि पाकिस्तान ने इसे कभी नहीं अपनाया। इस तरह की जानकारी इस बात को और मजबूती देती है कि भारत-के लिए रणनीति-स्वायत्तता कितनी अहम है।

कथित अवसर की छूट।

अगर भारत-इज़राइल का प्रस्ताव कभी हुआ होता और कार्यान्वित हुआ होता, तो दक्षिण एशिया की परमाणु-स्थिति आज बहुत अलग होती। निश्चित ही इससे पाकिस्तान जिस तरह से परमाणु हमले की दमकी देता है वो कभी नहीं दे पाता और भारत को इसका बहुत बड़ा लाभ होता। Barlow का कथन यह संकेत देता है कि वह अवसर खो गया। यह विचार-मंच पर बहस का एक बड़ा मुद्दा है।

पूर्व CIA अधिकारी Richard Barlow के दावों ने पाकिस्तान-नीति, परमाणु प्रसार और भारत-संबंधों पर नए सवाल खड़े कर दिए हैं।
उनका कहना है कि पाकिस्तान की न्यूक्लियर नीति सिर्फ भारत-विरोधी नहीं थी बल्कि एक विचार-आधारित इस्लामिक अभियानी थी। इस दृष्टिकोण से न सिर्फ भारत को बल्कि अन्य देशो को भी अपनी रणनीति, रक्षा-नीति और अंतरराष्ट्रीय साझेदारी पर पुनर्विचार करना होगा।

By Mayank Dubey

मयंक एक बहुआयामी लेखक, विचारशील कंटेंट क्रिएटर और युवा विचारक हैं एवं "मन की कलम" नामक हिंदी कविता संग्रह के प्रकाशित लेखक हैं। वे धर्म, भारतीय संस्कृति, भू-राजनीति और अध्यात्म जैसे विषयों में भी लिखते है। अपने यूट्यूब चैनल और डिजिटल माध्यमों के ज़रिए वे समय-समय पर समाज, सनातन संस्कृति और आत्मविकास से जुड़े विचार प्रस्तुत करते हैं।

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